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Tuesday, December 11, 2007

मोदीजी के लियी दिल्ली नही आसां

भाजपा ने आडवाणी को उसके प्रधानमंत्री के रूप मे जनता के सामने पेश किया है। सभी अचम्भे में हैं कि यह क्यॊ हो रहा है? दिल्ली के अखबार इसे मोदी के लिये स्पष्ट संकेत के रूप मे देख रहे हैं कि भैया दिल्ली दूर है गांधीनगर मे ही संतुष्ट रहो। गुजरात मे चुनाव के प्रथम चरण की पूर्व संध्या पर इस प्रकार का निवेदन वास्तव मे काफ़ी रहस्यमय है।

ऎसे मे प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह भी चुस्की लेने से बाज नही आये। जब वडोदरा मे पत्रकारों ने उनसे पूछा कि यह क्या है, तो तपाक से बोले कि यह मोदी को दिल्ली से दूर रखने का उपाय है। भाजपा के नेता खुद मोदी से डरे हुए हैं ।इससे अधिक वेधक और कोई जवाब शायद ही हो सकता था।

अहमदाबाद मे आये तो यहा भी यह सवाल उन्हे पूछा गया। उनका जवाब था कि यह भाजपा का अंदरूनी मामला है। उसी सांस मे बोले कि भाजपा ने आडवाणी को ऎसे पद के लिये उम्मीदवार बनाया है जो अभी खाली ही नही हुआ है !

अंदर का मामला कुछ भी हो, एक बात तो साफ़ है कि अरूण शौरी से ले और सभी नेता जो मोदी को प्रधानमंत्री के रूप मे बता रहे थे उनकी बोलती बंद हो जायेगी। भाजपा जहां खाना खाने जैसा काम भी रण्नीति का ही एक भाग होता है, वहां उसके नेता शायद अभी से ही दिल्ली वालॊं के लिये दिल्ली रिजर्व कर रहे हैं। मोदी अगर गुजरात हार जाते हैं तो उनका खाली दिमाग दिल्ली की कुर्सी के लिये षडयंत्र रचना शुरू न कर दे!!!!

Friday, December 7, 2007

देते है भगवान को धोखा...

उपकार फ़िल्म के मशहूर गाने कस्मे वादे प्यार वफ़ा, सब वादे हैं वादों का क्या इस गाने की कडियां आज अहमदाबाद के अखबारॊ मे चमक रही हैं । यह उमा भारती की भारतिय जनशक्ति पार्टी के विज्ञापन का शीर्षक है। देते है भगवान को धोखा, इन्सा को क्या छोडेंगे..। फ़िल्म मे यह गाना प्राण पहली बार उन्हे मिली अच्छे आदमी की भूमिका मे गातें है। पर यह विज्ञापन अपने को हिन्दु ह्र्दय सम्राट कहलवाने वाले मोदी को प्राण की विलन की भूमिका मे दर्शाता है ।

आधा पन्ने के इस विज्ञापन से उमा भारतीजी के उम्मीदवार यह कह रहे हैं कि मोदी ने हिन्दुत्व का नाम ले वोट बटोरे हैं और बाद मे हिन्दुऒं को धोखा दिया है।इसमे मोदी का एक मुसलमान के साथ विचार विमर्श करते हुए फ़ोटो है। एक दूसरा कवितामय बयान है, पांच साल-मोहम्मद अली जिन्दाबाद, चुनाव के समय याद आये हिन्दुवाद, वाह रे भाजप तेरा अवसरवाद। टूटा हुआ त्रिशूल मोदी के टूटे हिन्दूत्व को बतलाता है।

मोदी ने हिन्दुऒ को क्या क्या वादे किये थे और वो अभी तक पूरे नही किये यह कहकर विज्ञापन कहता है -ये सब सारे संत हैं, मोदी तेरा अंत है।

चुनाव परिणाम जो भी आये, आजकल गुजरात के मतदाता चुनाव प्रचार की चुस्किया ले रहे हैं!!!!

कांग्रेस राहुल गांधी पर सट्टा खेलेगी

कांग्रेस ने आखिरकार राहुल गांधी को गुजरात के जनमत संग्राम मैदान मे उतारने का निर्णय कर लिया है। राहुल रविवार को सूरत शहर मे उनका रोड शो करेंगे। रविवार प्रथम चरण के प्रचार का आखिरी दिन है। साफ़ है कि उन्हे चुनाव मे काफ़ी देर से उतारा जा रहा है।

रहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव मे क्या गुल खिलाये यह सभी को मालूम है। और हाल ही मे शराब के पक्ष मे उनके खुले विचार खुले रूप मे रख उन्होने एक और विवाद को न्योता दे दिया है। आज जब कांग्रेस गुजरात मे नशाबंदी की पैरवी कर रही है तब चुनाव प्रचार मे राहुल को बुलाना यानि कि आ बैल मुझे मार की स्थिती पैदा करना है।

राहुल का सूरत प्रचार पांच बैठकों को प्रभावित करेगा। ये हैं सूरत उत्तर, पूर्व, पश्चिम, चोर्यासी और ओलपाड। सुबह ११ से शाम ५ तक राहुल यहां प्रचार करेंगे। साफ़ है कि भाजपा इस मौके को नही छोडेगी। और कांग्रेस के पास कोई बचाव भी नही है!!!!! पर राहुल ठहरे सोनिया पुत्र, बेचारे कांग्रेसियों को मैडम की गुड बुक मे रहना है या नही?

भाजपा का गरीबी मुक्त गुजरात का वादा

आखिरकार भाजपा ने उसका चुनावी धोषणा पत्र जारी कर ही दिया। उसकी भाषा में कहें तो उनका संकल्प पत्र।

कांग्रेस ने गरीबों को कलर टीवी देने का वादा किया है तो अपने भाजपाईयों ने तो गुजरात में सभी को घर देने क वादा किया है। उस घर में चौबिस घंटे बिजले होगी।

रही बात किसानों की। सभी किसानों के खेतों में कुओं पर बिजली कनैक्शन होगा। नहरों में सिंचाई के लिये पानी होगा।

इन्दिरा गांधी के दिनों की याद दिलाता हुआ उसका नारा है, गरीबी मुक्त गुजरात! प्रदेशाध्यक्ष पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि पांच वर्ष बाद गुजरात में “गरीबी रेखा से नीचे” शब्द ही नहीं होगा।

भाजपा के इस गुजरात में सभी साक्षर होंगे। सभी के घर में नल होंगे जिसमें गुणवत्ता वाला पेयजल होगा। सभी गांव शहरों से मजबूत ऑल वेदर सड़कों से जुडे होगें। युवा शक्ति को रु.१००० करोड के रिवालविंग फंड के द्वारा सक्रिय शक्ति बनाया जायेगा।

यह सब कैसे किया जायेगा, इसके लिये कितना धन ख्रर्च होगा, वह कैसे जुटाया जायेगा जैसे प्रश्‍नों के उत्तर मे भाजपाई नेताओं का कहना है कि यह मत पूछों। हम यह सब कर लेंगें!!

भाजपा के चुनावी प्रमुख मुद्दे इस तरह है-सुरक्षित, सलामत और समृद्ध गुजरात, गुजरात १२ प्रतिशत वृद्धिदर हासिंल करेगा, सकल घरेलु उत्पादन दुगना और प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय रु.८०,००० होगी, पारदर्शक और प्रामाणिक राज्य व्यवस्था, गरीबी मुक्त गुजरात, सभी घर विहीन परिवारो को घर, प्राथमिक शिक्षा में १०० प्रतिशत पंजिकरण और शून्य ड्रोप आउट, सभी घरों में नल द्वारा शुद्ध पीने का पानी, गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले परीवार के लिए सर्वग्राही स्वास्थ्य विमा कवच, सभी गांवों को बारह मास पक्का रास्ता ।
स्वस्थ,स्वच्छ और निर्मल गुजरात,युवाशक्ति का विकासशील उपयोग, रिवोल्वींग फंड के रचना, बच्चों और वृद्धों की विशेष देखभाल, वंचितों के विकास के लिये विशेष योजना, उद्योग,वाणिज्य और ढांचागत क्षेत्र में वैश्विक स्तर, स्थापित विधुत ऊर्जा में दुगना कर २०,००० मेगावॉट।

Thursday, December 6, 2007

चुनाव का आतंकी खेल

शान्ती सुरक्षा और विकास की बातें करते करते कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आतंकवाद की बातें करने लग गये हैं । भाजपा ने कल एक विज्ञापन दिया था। उसमे बताया गया था कि भाजपा के शासन मे गुजरात में तो केवल एक निर्दोष ही मरा है।दूसरी ओर UPA के शासन मे ५६१९ । मजेदार बात यह है कि इस विज्ञापन मे केवल गुजरात के शासन के चार वर्षो की बात कही गई है। साफ़ है कि यदि मोदीजी के ६ साल ले तो गोधरा और अक्षरधाम भी आ जाये और फ़िर यह आंकडा काफ़ी बडा हो जाये!और फ़िर मोदीजी यह मुद्दा उठा ही नही सकते !

आज कांग्रेस ने विज्ञापन दिया है। उसमे NDA सरकार के समय के आंकडे दिये गये हैं । विज्ञापन देख लगता है कि UPA सरकार के कार्यकाल मे तो आतंकवाद की कोई घटना ही नही हुई है। मोदीजी और कांग्रेसियों दोनों को लगता है कि जनता बेवकूफ़ है। आज के जमाने मे जब लोगो के पास जानकारी के बहुत सारे माध्यम हो गये हैं इस प्रकार की सोच राजनीतिक दलों का बेवकूफ़ी का एक खुला प्रदर्शन नही तो और क्या!!!!!

मोदी के विकासवाद का हिन्दू चेहरा

अपने मोदीजी ने इस बार चुनाव मैदान मे विकास का नारा लगाया। पूरे देश मे उनके समर्थकों ने कहा कि विकासवाद और राष्ट्रवाद ही मोदीजी का पर्याय है। वे देश की शक्ती हैं यह नारा लगने लगा। खैर अब पूरी दुनिया को मालूम पड गया है की मोदीजी का विकासवाद उनके हिन्दुवाद का ही स्वरूप है। अब वो सोहराबुद्दीन को मारने की ही बात कर रहे हैं ।

आज पूरे देश मे चर्चा है कि मोदीजी ने कितनी महिलाऒ को टिकट दी है। उन्होने कितने नये चेहरों को शामिल किया है। पर क्या किसी ने गौर किया है कि एक भी मुसलमान को टिकट नही दी गई है। गुजरात मे १३ प्रतिशत से अधिक मुसलमान हैं। १८२ बैठके है । २००२ में भी एक भी मुसल्मान को टिकट नही दी गई थी। क्या उसे एक भी उम्मीदवार नही मिल रहा है। आज हरिजनो और पिछडो को टिकट दे पार्टी यह जाहिर कर रही है की वह कितना समतोल विकास कर रही है।

क्या हम राज्य के १३ प्रतिशत नागरिकों को नजर अंदाज कर राज्य का विकास कर सकते हैं ? क्या मोदीजी यह जताना चाहते हैं कि मुसलमानों को जो मिले जैसे मिले उससे ही संतोश कर लेना चाहिये क्योकि गुजरात हिन्दु राष्ट्र है!!!!

Wednesday, December 5, 2007

अब आचार्य धर्मेन्द्र उतरे मैदान मे

इस चुनाव मे गुजरात सम्तों का चुनावी अखाडा बन गया है। चुनाव की घोषणा से पहले ही सम्तों ने यह सम्केत दे दिये थे कि वे मुख्य मंत्री मोदी के साथ नही हैं। पर मोदीजी का शयद यह मानना था कि और सभी की तरह साधु संत भी उन्ही की वजह से उनकी दुकाने चला रहे हैं।

पर उमा भारती पहली थी जिन्होने उनके इस विचार को तोडा। उतार दिये ५३ उम्मीदवार मैदान मे। बाद मे गुलांट मार गई। पर उनके बंदे तो अभी भी मैदान मे अडिग खडे हैं। किसी को मालूम ही नही उमाजी किस खेमे मे हैं। उनके साक्षात्कार तो यह कहते हैं कि वे मोदी की बहन बन उनके साथ है। पर, उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष सघंप्रिय गौतम जी कहना है कि वे पूरी तरह से मोदी के खिलाफ़ मैदान मे हैं।

अभी यह अनिश्चिता खत्म हुई नही है कि आचार्य धर्मेन्द्र मैदान मे कूद पडे हैं। उनका कहना कै कि वे राष्ट्रिय विचारधारारा के साथ हैं। उन्होने इसके लिये नागरिक जागरण मंच भी बनाया है जिसका नारा है-जीता है भारत, जीतेगा भारत!! पत्रकारों के लाख पूछने पर भी उन्होने यह नही बताया कि वो किसके साथ हैं !!!! फ़िर किसका क्या साथ देंगे धर्मेन्द्रजी।

मोदी के ये NRG प्रेमी

सुना है कि अमेरीका मे मोदी प्रेमियों ने एक अभियान शुरू किया है। नोट और वोट से मोदी की मदद के लिये। उन्हे मालूम है कि मोदी का नाम आते ही गुजरात के दंगो की बात आयेगी । इसका जवाब उन्होने अमेरीका के अंदाज मे ही तैयार कर लिया है। उनके समर्थक अमेरिका में कह रहे हैं कि जैसे पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल को केवल उनकी गर्ल फ्रेंड मोनिका लेवंसिकी से सेक्सी रिश्तों की नजर से ही देखना ठीक नहीं होगा, उसी प्रकार मोदी को केवल गुजरात दंगों से ही देखना उचित नहीं होगा।

इन मित्रों का कहना है कि मोदी को भारत को श्क्तीशाली बनाने के लिये जिताना हरूरी है!!!


मोदी की सहायता के लिए बना है 'सपोर्ट गुजरात फोरम । उसने 'एनआरजी' को पकड़ने के लिए टीवी, रेडियो, ई-मेल, एसएमएस आदि साधनों का सहारा लिया है। फोरम ने विदेश मे बसे गुजरातियों से अपील की है कि वह गुजरात में अपने रिश्तेदारों, सहयोगियों और दोस्तों को ई-मेल और टेलिफोन करके 'मोदी भाई' को जिताने के लिए पूरी कोशिश करें। न्यू यॉर्क के एक पॉपुलर रेडियो स्टेशन को सपोर्ट गुजरात ने एक विशेष इन्टरव्यू में कहा है कि मोदी को केवल गुजरात दंगों की नजर से देखना ठीक नहीं होगा। सपोर्ट गुजरात ने इश मौके पर कहा कि क्या पूरी दुनिया में दंगे नहीं होते? पाकिस्तान, फ्रांस, लोस ऐंजिलिस में भी दंगे होते हैं।

विदेश में मोदी के प्रचारक दावा कर रहे हैं कि उन्होंने इतिहास रचा है, वह कर दिखाया है जो पिछले 50 सालों में भारत में नहीं हो पाया। मोदी की दूरदृष्टि और फिलॉसफी रही है- ज्ञान शक्ति, ऊर्जा शक्ति, जल शक्ति, जन शक्ति और रक्षा शक्ति। सपोर्ट गुजरात का दावा है कि अब गुजरात आतंकवाद से मुक्त है जबकि अन्य राज्यों में यह एक बड़ी समस्या है। इंटरव्यू में यह पूछे जाने पर कि गुजरात दंगों के लिए मोदी ही को जिम्मेवार माना जाता है, सपोर्ट गुजरात ने कहा कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में गुजरात से 3 गुना ज्यादा लोग सिख दंगों में मारे गए थे, मगर उसकी कोई बात नहीं करता।

हमे यह जान कर बहुत खुशी हुई की अपने ये गुजराती भाई अमेरिका मे बैठ कर भी गुजरात का कितना ख्याल रखते है। हे मित्रो गुजरात को आप जैसे हितेछुऒं की जरूरत है। आप और मोदी मिलकर गुजरात को दुनिया का नम्बर वन बनायें। आज जब गुजरात को मोदी ने स्वर्ग बना दिया है तो आप इस स्वर्ग का आनन्द लीजिये। यहा आईये और गुजरात को देखिये। मोदीजी की प्रचार सी डी मे तो बहुत देख लिया!!

मोदी का मुखोटे के पीछे का चेहरा

मोदी केवल विकास की हे बात करना चाहते हैं । वे गोधरा या अन्य किसी ऎसे मुद्दे पर चर्चा नही करना चाहते जो अदालत के समक्ष हो। पिछले काफ़ी समय से ये बाते दोहराने वाले मोदी अब जहां भी जाते हैं, सोहराबुद्दिन की मुठभेड की चर्चा जरूर करते हैं । लोगो से यह भी पूछते हैं कि सोहराबुद्दिन का मर्डर नही करता तो क्या करता?

आज जब सुप्रीम कोर्ट मे यह मामला है, गुजरात सरकार यह कह चुकी है कि यह फ़र्जी मुठभेड थी तब मोदी का यह कहना कि सोहराबुद्दिन आतंकवादी था इसलिये उन्होने उसे उडा दिया यह क्या दर्शाता है? उधर गुजरात सरकार का वकील परेशान है कि वह अदालत मे क्या कहे मोदी के इस विधान के बाद?

पर मोदी के इस विधान के बाद पुलिस की गुत्थी सुलझ गई है ? अभी तक पुलिस यह नही जान पाई है कि उसके आला अफ़सरों ने यह फ़र्जी मुठभेड क्यो की थी ? मोदी ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि यह सब उनकी कारस्तानी थी!!! है क्या पुलिस मे उन्हे पकडने की ? इस विधान ने मोदी के विकास के मुखोटे को हटा कर असली कोमी चेहरे को उजागर किया है।

बुरे फ़ंसे विहिप नेता

विश्व हिन्दु परिषद के अंतरराष्ट्रिय अध्यक्ष अशोक सिंहल की हालत खस्ता है । तेजाबी निवेदन करने वाले सिंहल्जी को मालूम नही था कि संतो के बारे मे किया गया उनका बयान उनको कितना भारी पडेगा। उन्होने मोदी का विरोध करने वाले संतो के मान्सिण्घ और जयचंद कहा। इस समाचार का छपना क्या था कि गुजरात मे भूचाल आ गया। संतो ने सिंहल को सबक सिखा देने का एलान कर दिया।

मोदी की पैरवी का यह अंदाज इतनाभारी पडा कि आर एस एस ने उन्हे तत्काल संतो की माफ़ी मांगने का फ़रमान दे डाला। साफ़ है कि गुजरात के साधु संत वैसे ही मोदी के खिलाफ़ मोर्चा खोले बैठे हैं। उधर उमा भारती के चेले भी ५१ बैठको पर मोदीजी के सामने बंदूक ताने बैठे हैं । एसे मे संतो को नारज करना मतलब आग मे घी डालना हैं।

नतीजन अपने अशोकजी को आज गुजराती अखबारों मे बडे बडे विज्ञापन दे माफ़ी मांगनी पडी। उन्होने जयचंद और मानसिंह जैसे शब्दो का प्रयोग किया था। समाचार दो कालम के थे, खुलासा चार कालम का। मूल समाचार की लंबाई १० से.मी और खुलासा ३० से.मी लम्बा। साफ़ है जिन्होने समाचार नही पढा था उन्होने खुलासे से अशोकजी के खतरनाक भाषा प्रयोग के बारे मे जाना!!

उनके इस माफ़ी विज्ञापन का शीर्षक है-संतो के अपमान के बजाय मै मरना अधिक पसंद करूंगा। उन्होने यह भी बताया कि वे संत सेवक परिवार से हैं । मैं संतो के अपमान की बात स्वप्न भी नही सोच सकता।

अशोकजी ये तो बताईये की आपको इतना बडा विज्ञापन देने की जरूरत क्यो पडी। अगर आप की बात मे इतना ही दम था तो संत आपके मौखिक खुलासे से ही क्यो नही मान गये। और मजेदार तो यह है कि उन्होने खुद को संतो का रजकण कहा है।

Tuesday, December 4, 2007

केशुभाई बोले...

कल रात केशुभाई ने दूसरा गोला दागा। दो दिन पहले उनके विचारो मे लिपटा हुआ सरदार पटेल उत्कर्श समिति का एक विग्यापन छपा था। कल तो वे खुद बोले। उन्होने मोदी का नाम नही लिया, पर जो भी बोले,जितना भी बोले उससे साफ़ था कि उनकी जंग मात्र मोदी के शासन के खिलाफ़ हैं। उनका इंटरव्यु एक चैनल पर प्रसारित हुआ।

केशुभाई गुजरात मे भाजपा को शून्य से शुरू करने वाले नेताऒ मे से एक है। दो बार मुख्य मंत्री रह चुके केशुभाई पटेल और नरेन्द्र मोदी कट्टर राजनीतिक दुश्मन हैं ।

इनका कहना था कि गुजरात मे डर का माहौल है, वहां लोकतंत्र नहीं तानाशाही है। उनकी बात शायद गुजरात के बाहर के लोगों को समझ मे ना आये। गुजरात मे भी आम आदमी यह समझ नही पा रहा है। यदि हम विधान सभा की कार्यवाही हे देखे तो मालूम पडेगा कि आप सरकार के या मोदी के विरुद्ध मुद्दा छेडिये और शासक पक्ष का हंगामा शुरू।बहुमति के जोर पर जल्द ही विरोध करने वाले को सदन के बाहर।

किताबों मे लोकतंत्र पढ्ने वाले इस व्यवहारिक लोकतंत्र को नही समझ पायेंगे। पर यह गुजरात की हकीकत है। साफ़ है कि भाजपा का कोई सदस्य तो सदन मे सरकार की बुराई नही कर पायेगा। सदन के बाहर मोदीजी बाहर वालों की तो छोडो, खुद की पार्टी वालों की भी नही सुनते।

उन्होने निवेश का मुद्दा भी छेडा।साफ़ है की सारा निवेश कुछ चुने हुए उध्योगपतियों से ही आ रहा है। उसका फ़ल भी उन्ही को ही मिल रहा है। आम आदमी का क्या?

पर केशुभाई ने ये सभी बातें गोल गोल कहीं । ना तो मोदी का नाम लिया और ना ही उनका कोई विकल्प सुझाया।

औरों की बात छोडॊ, केशुभाई आप खुद नरेन्द्र मोदी से कितने डरे हुए हैं कि वो कहीं आप को पार्टी से बाहर नही निकलवा दे!!!!

गुजरात भवन में रहने के टिप्स

दिल्ली में चाणक्यपुरी मे जहां एक और सभी देशों के दूतावास हैं वहीं सभी राज्यों के भवन भी हैं । उसमे अपने गुजरात का भवन भी है। चुनाव टिकट रिपोर्टिंग के चक्कर मे एक पखवाडे मे तीन बार वहां रुकना हुआ। हम यहां अपने अनुभव के निचोड को पाठको की सुविधा के लिये पेश कर रहे हैं।

सर्वप्रथम तो जहां तक संम्भव हो यहां रुकना टाले, सिवाय की आप गुजरात सरकार के आला अफ़सर है या फ़िर राजनीतिक तोप हैं। या फ़िर हमारी तरह मजबूरी मे रुक रहे हैं।

यह समझने के लिये यह बता दें कि विपक्ष के नेता अर्जुन मोढवाडिया को भी कमरा मिलने में दिक्कत होती है। दूसरा तरीका यह है कि काउंटर पर अगर आप मा-बहन कर सकते हैं तो आपके कमरा पाने के अवसर बढ जाते हैं। एक दिन सुबह सुबह लीम्बडी के विधायक भवान भरवाड के बुकिंग कराने के बावजूद उन्हे कमरा नही मिला तो उन्होने मोदी सरकार का मां बहन चालीसा गाना शुरू किया । और स्टाफ़ को तुरन्त ही उनके लिये कमरा दिखलाई दे गया। उसके बाद हमने यह नुस्खा सफ़लतापूर्वक कईयों को अपनाते हुए देखा।

यदि आप तोप नही हैं तो मेहरबानी कर आप अपना तौलिया और साबुन जरूर ले जायें । यहा यह आसानी से नही मिलता। ऎसा भी हो सकता है कि आपके काफ़ी रिकझिक करने पर आपको फ़टा हुआ तौलिया मिले। वैसे तो चद्दर वगैरह भी कब बदली जाती है, इसके नियम हम अभी तक नही समझ पाये हैं। यह अनुभव आधारित सलाह है।



भले ही आप को गुजराती संस्कृति और गुजरात से कितना भी लगाव हो, यहां गुजरात ढूंढने की कोई कोशिश न करें। अन्यथा यह खुद को दुखी करने का एक प्रयास ही होगा।यहां सुबह नाश्ते मे गुजराती फ़ाफ़डा, खमण मिलना बंद हो गया है। भोजन मे जरूर गुजराती छटा है, पर इसमे भी छाश, कचुमर जैसी वस्तुएं लुप्‍त हो गई है। सारा स्टाफ़ बाहर का है और वह दो तीन गुजराती शब्द ही जानता है। केम छो, आवजो और रूम नथी!!!



हमने देखा कि अधिकतर लोग बाहर खाना पसंद करते हैं। ये वो लोग हैं जिन्हे गुजरात भवन मे रहने का पाला बार बार पडता है। मांसाहारी खाने के शौकीन बगल के जम्मू कश्मीर भवन मे जाते है और शाकाहारी लोगों के लिये निकट का मध्यप्रदेश भवन प्रिय स्थल है। आप कोई और स्थल भी चुन सकते हैं।

पिछले काफ़ी समय से यहां रिक्त स्थानो की भरती ना होने के कारण यहां का स्टाफ़ हमेशा काम के बोझ के तले ही दबा रहता है। हालांकि यह आथित्य सत्कार क्षेत्र का अंग है, यहां के स्टाफ़ को कोई भी नया अतिथी एक बोझ लगता है। अपनी समस्याऒं का अधिकारियों द्वारा हल ना पा सकने के कारण स्टाफ़ का शिकार आने वाले मेहमान होते हैं । क्योकि तोप लोगो के सामने कुछ नही चलती इसलिये स्टाफ़ की भडा़स एक या दूसरे तरीके से आम अतिथी पर ही निकलती है। आप इस भडा़स को अपने तरीके से हेंडल कर सकते हैं! आप या तो खुद का भेजा गरम कर सकते हैं या फ़िर सामने वाले की जेब!!!

अगर आप रूम मे टिक ही गयें हैं तो आप पंखों पर जमी गंद की काली पर्त से ना घबरायें। यह गंद इतनी जोरदार चिपक गई है कि आप पर इसका एक कण भी नही गिरेगा। हमने इस गर्द का वजन ढूंढ्ने का कोई सार्थक प्रयास नही किया है इसलिये हम यह बताने की स्थिति मे नही हैं कि ये पंखे कब तक इस गर्द का बोझ सहन कर पायेंगे।

नहाते समय इस बात का ध्यान रखे कि पानी जा सकता है, या फ़िर गीजर काम न करता हो। पर अभी ये घटनायें जल्दी जल्दी नही होती हैं । चाय कॉफ़ी आने पर यदि केतली का ढ्क्कन नदारद हो तो वेटर को कोसने की जगह चाय कॉफ़ी जल्दी से गुटकने पर शक्ति केंद्रित करें । आपके स्वास्थय और जेब के लिये यही हितकर होगा। रूम मे टोस्ट खाने के लिये सामान्य ओर्डर देने से थोडे ज्यादह प्रयत्न करने के लिये तैय्यार रहें। आपको तैय्यार जवाब मिलेगा, कि टोस्टर बिगडा हुआ है। ब्रेड बटर से काम चला लो।

यदि आप यह मानते हैं कि काउंटर पर चाबी छोडने से आपका कमरा साफ़ मिलेगा, तो आप अपनी धारणाऒ के टूटने के दुख को सहन करने के लिये तैय्यार रहें। मित्रो ये टिप्स पीछे वाली विंग मे अधिक लागू होते है।

यह हाल पिछले कुछ वर्षो मे ही हुआ है। एक जमाना था कि गुजरात भवन नम्बर वन था। यहां बाहर के लोग भी आ कर उनके कार्यक्रम किया करते थे।

मजेदार बात तो यह है कि अपने मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई भी जब दिल्ली आते हैं तो यही रुकते है। पर वो तो CEO ठहरे गुजरात के। दिल्ली मे विभिन्न राज्यों के भवन उन राज्यो के परिचायक हैं । और यह है परिचय हमारे नरेन्द्र्भाई के नम्बर वन गुजरात के गुजरातभवन का!!!

Monday, December 3, 2007

कांग्रेस का सुदर्शन चक्र

कांग्रेस ने हाल ही मे उसका चुनावी घोषणापत्र जारी किया। उसे नाम दिया कांग्रेस की शपथ। आजकल राजनीतिक दलों मे यह एक नयी शैली शुरू हो गई है। भाजपा ने इस बार अभी तक उसका घोषणापत्र जारी नही किया है। शायद जारी नही भी करे। पिछली बार उसने इसे संकल्प पत्र का नाम दिया था। यह बात अलग है कि मुश्किल से १० प्रतिशत संकल्प ही पूरे हुए हैं । खैर हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के शपथपत्र की।

देखा जाये तो इसमे कुछ नया नही है। पर, कुछ घोषणाएं तो ऎसी हैं वो मोदीराज की समस्याओं का हल हैं। आजकल गुजरात मे किसान मोदीजी की सरकार से त्रस्त हैं। उन पर बिजली चोरी के केस ही नही हो रहे, उन्हे बिजलीचोर के रूप मे विज्ञापनों मे दर्शाया जा रहा है। अब कांग्रेस का कहना है कि वह सत्ता मे आयी तो वह किसानो के सारे केस वापिस ले लेगी। इसके साथ ही छोटे किसानों के लिये राहत दर पर खाद और बिजली ! किसानों के लिये इससे ज्यादह खुशी कि बात और क्या हो सकती है।

मोदीजी के आने के बाद शिक्षकों की भर्ती ही बंद हो गई है । तीन हजार के फ़िक्स वेतन पर विद्यासहायक और शिक्षासहायकों की भरती की जाती है। कांग्रेस का कहना है कि यदि सत्ता मे आयी तो वो शिक्षकों की भरती पूरे स्केल वाले वेतन से करेगी। कौन नही चाहेगा ऎसी नौकरी।

हमारे मोदीजी ने विधवा और त्यकताओं को मिलने वाली मदद पर रोक लगा दी है। उनकी सरकार का कहना है कि इस योजना का दुरूपयोग होता है। घोटालेबाजों को ढूंढने के नाम पर किसी को भी भत्ता नही मिल रहा । ऎसे में कांग्रेस कह रही है कि सत्ता मे लाओ, भत्ता पाओ और और भी ज्यादा राशी पाओ ।

इसी प्रकार सरकारी डोक्टरों को वादा किया है कि मोदी ने जो डोक्टरों का NPA बंद किया है, उसे वो वापिस शुरू कर देंगे। साफ़ है, मोदीजनित समस्याऒं के हल के सहारे कांग्रेस सत्ता पाने की नीति पर चल रही है। कांग्रेस इसमे सफ़ल होगी या नही, यह तो चुनाव परिणाम ही बतायेंगे। पर यह साफ़ है कि इस शपथपत्र ने भाजपाईयों की नींद उडा दी है। परिणामस्वरूप भाजपा के केंद्रीय प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने पत्रकारों को प्रेसनोट ठोक दिया कि कांग्रेस का शपथपत्र किराये के टट्टूऒं ने बनाया है और इसमे भाजपा की योजनाऒ को ही दोहराया गया है!!!

एक विज्ञापन जिसने तहलका मचा दिया

अहमदाबाद के अखबारों मे आज एक आधा पन्ने का विज्ञापन छपा। तानाशाहों को गद्दी से उतार फ़ेकों। बागी भाजपाईयों की सरदार पटेल उत्कर्ष द्वारा दिये गये इस विज्ञापन की विशेषता यह है कि इसमे केशुभाई का फ़ोटो है जिसमे वो हेडलाईन की ओर इशारा करते हुए दिखाई दे रहे है । विज्ञापन मे कहा गया है कि केशुबापा की जनता को अपील- आज परिवर्तन लाने की सख्त जरूरत।

गुजरात और समाज के हित मे पूरी जिन्दगी लगा देने वाले केशुबापा बहुत दुखी हैं । उन्होने भाजपा का प्रचार करने से इंकार कर दिया है। उन्होने यह निर्णय कितने दुखी मन से लिया है यह सोचना। घर मे बैठे मत रहना। मतदान करने के लिये निकलना और परिवर्तन के लिये ही मतदान करना।

केशुभाई भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और गुजरात के दो बार मुख्य मंत्री रह चुके हैं ।

केशुभाई बागी भाजपाईयो की अगुवाई कर रहे हैं। पिचले कुछ समय से एक व्यवस्थित रूप से कहा जा रहा है कि केशुभाई विरोध मे प्रचार नही करेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि केशुभाई अमरीका चले जायेंगे और बागियों को अकेला छोड देंगे। इस विज्ञापन ने इन सभी अफ़वाहों को गलत सिद्ध कर दिया है। साफ़ है कि केशुभाई उनके राजनीतिक दुश्मन नरेंन्द्र मोदी को चुनावी संग्राम मे नही छोडेंगे ।

Sunday, December 2, 2007

गुलाटमार यतिन वापिस भाजपा में

गुजरात की राजनीति से ले कोर्ट कचहरी तक मे यतिन ऒझा को कौन नही जानता? काफ़ी मशहूर हैं । एक नेता या वकील के रूप मे कम,सनसनीबाज आदमी के रूप मे ज्यादा। मजेदार बात यह है कि इस सबके बावजूद वे अहमदाबाद के जनजीवन मे एक बडा नाम हैं। वो साबरमती के भाजपा के विधायक रह चुके हैं । कुछ साल पहले नाराज हो गये। तत्कालीन मुख्य मन्त्री केशुभाई पटेल को कुछ पत्र दाग, भाजपा को गालियां बक भाजपा को अलविदा कह दी।
जुड गये कांग्रेस मे। और काफ़ी समय तक गुमनामी मे खो रहे। अब जब चुनाव की बात चली तो अपने यतिन भाई का बजार वापिस गर्म हो गया। जब लगा कि कांग्रेस मे दाल नही गलेगी , उन्होने मोदीजी के आसपास घूमना शुरू कर दिया। पर अपने भाई बेवकूफ़ थोडे है। हवा फ़ैल्वा दी, कि यतिन वापिस भाजपा मे आ रहे हैं। नतीजा । अपने यतिन भाई सभी को सफ़ाई देते नजर आये कि इस बात मे दम नही है।

कुछ दिन पहले मिल गये कांग्रेस भवन मे । बोले, योगेश मै शाह्पुर से चुनाव लड रहा हू, कांग्रेस की टिकट पर। उनका वही अंदाज। आखों मे आंख डाल कर। कोई उनकी बातॊ को गलत कैसे मान सकता है। हमने भी उनके दोस्तों को फ़ोन कर कर कह दिया, भैये दो अभिनंदन यतिन को । थोडी देर बाद हमारे फ़ोन की घंटिया बजने लगी। मित्र बोले कि यतिन तो ना कह रहा है। हमे यह कहने की जरूरत ही नही पडी कि भैये यतिन की बात तो राम जाने।
कुछ दिन पहले, गुजरात भवन मे उनकी बीबी के साथ टकरा गये। बडी गर्मजोशी के साथ मिले। उन्होने अपनी से पूछा, जानती हो योगेश्जी को। बडे पत्रकार है, काफ़ी पुराने मित्र। दिल्ली जाते ही अपने गुजरात के नेता हिन्दी बोलनी शुरू कर देते हैं ! हर कोई सोचता है की वो संसद मे बोल रहा है।

खुद ही बोले कि कांग्रेस मे ही है। इस मुलाकात को दस दिन भी नही हुए और कल रात हमारे फ़ोटोग्राफ़र ने हमे कहा कि यतिनभाई राजनाथजी के साथ भाजपा की एक बैठक को संबोधित कर रहे हैं!!!! कुछ देर मे भाजपा के फ़ेक्स ने यह बात सही सिद्ध कर दी कि अपने यतिन भाई अब वापिस भाजपाई हो गये हैं । देखे कितने दिन भगवा रंग चढा रहता है उन पर।

विपक्ष के नेता का चुनावी महासंग्राम

विधानसभा में विपक्ष के नेता अपने दाढी वाले अर्जुनभाई मोढवाडिया चुनावी मैदान में काफी विरोध का सामना कर रहे हैं। उनके मतक्षेत्र पोरबंदर में सर्वाधिक उम्मीदवार १५ है। राज्य के १८२ मतक्षेत्रों में पोरबंदर ही एक ऐसा मतक्षेत्र है जहां १५ उम्मीदवार है। तीन मतक्षेत्रों में १४ हैं।

पूर्व उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन को इस मामले में राहत है। दो बार चुनाव हारने बाद इस बार वो साबरमती छोड़ अहमदाबाद के दूसरे सिरे की ओर के मातर में चले गये हैं।

उनके सामने केवल एक ही उम्मीदवार है, भाजपा का देवुसिंह चौहान। वो कांग्रेस के बागी हैं जो भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और इसलिये बेचारे नरहरि को नई पिच पर देवुभाई की बागी की फास्ट और स्पीन दोनों ही झेलनी पडे़गी।

शारीरिक और राजनीतिक दोनों ही रुप से हेवीवेट, क्रिकेट में भी हेवीवेट हैं। वे गुजरात क्रिकेट एसोशियेशन के अध्यक्ष हैं और क्रिकेट बोर्ड के उपाध्यक्ष रह चुके हैं।

देखें होम ग्राउन्ड छोड़ विदेशी ग्राउन्ड नरहरि भाई को कितना शुभ होता है।

उधर अपने इकरे शरीर के अर्जुनभाई राजनीति के हेवीवेट हैं। देखें विरोध पक्ष के नेता के रुप में मंझे अपने अर्जुनभाई इस चुनावी संकट से कैसे निपटते हैं।

दाढी वाले मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद को नमो अर्थात झुको कहलवाना पसंद करवाते हैं। अपने अर्जुनभाई मोढवाडिया नमो के सामने अमो अर्थात हम हैं!

उनका कहना है कि उसके सामने इतने सारे उम्मीदवार नमो की चाल है। उनका कहना है कि फिर भी अमो (हम) जीतेंगें।

सुरिन्दर भाई टिकट उडा लाये

अपने सुरिन्दर भाई तो भाई ही हैं । हर दो तीन साल में कुछ कमाल दिखला ही देते हैं । बडी दाडी और गुस्सैल तेवर। सुरिन्दर भाई तो राजपुताना अंदाज बता ही देते हैं। तीन बार हार चुके है। लगा कि शायद पत्नि को खडा कर उसके भाग्य से खुद को चमकाये, पर समय ने साथ नही दिया। फ़िर भी अपने सुरिन्दर भाई राजपुत तो सुरिन्दर भाई हैं। हिम्मत नही हारी। पहुच गये दिल्ली, विधान सभा की टिकट के लिये। डेरा डाल दिया गुजरात भवन में । और टिकट वांछुऒ की तरह सुबह शाम सभी के दरबार मे चक्कर लगाते और कहते की कुछ भी हो जाये, टिकट ले कर ही जायेंगे।

बरसों दिल्ली मे ऎ आई सी सी मे चप्पल घिसटने के बाद अपने सी ऎम राजपुत ने भी इस बार ठान ली कि वो भी टिकट ले कर ही रहेंगे। आकाऒ को कह दिया कि अब और काम काज नहीं। अब तो हम एम एल ऎ बन कर ही रहेंगे। हालत यह कि, कोइ भी पूछे कि सी एम कहां हो आजकल, तपाक से जवाब देते, ६९ दरियापुर-काजीपुर।

ये दो कम नही थे तो अपने कब्बडी उस्ताद हेमंत झाला भी मैदान मे कूद पडे, जै राजस्थान का नारा लगा कर। राजस्थनियो के शाहिबाग मे रहने वाले हेमन्त भाई का कहना था कि उनकी जैन बीबी जिस पर वो पहली नजर मे ही फ़िदा हो गये थे वो उनका एक बहुत बडा वोट बैन्क हैं। इस इलाके मे जैन काफ़ी अधिक संख्या मे हैं।

मजेदार बात तो ये कि दिल्ली मे ये आराम से एक साथ मिलते और चाय पिते हुए बतियाते और अपने एक सूत्री मिशन पर निकल जाते। खैर आखिर मे यह साफ़ हो गया कि ६९ दरियापुर-काजीपुर तो लोजप को मिलेगी।

पर अपने सुरिन्दर भाई तो दिल्ली से नेताजी के अंदाज मे आये। समर्थकों को हवाई अड्डे पर स्वागत के लिये बुलवा लिया। घोषणा कर दी कि टिकट तो उन्हे ही मिलेगी। सब दंग। खैर दबंग सुरिन्दर भाई अपने प्रदेश अध्यक्ष भरतसिंह के खास ठहरे ।

बाद मे मालूम चला कि आखिरी दिन सचमुच मे ही सुरिन्दर भाई ने नामांकन पत्र भर डाला। कुछ का कहना था कि भरतभाई के गिरेबान थाम सुरिन्दर भाई टिकट ले आये। अपने भाई को सब जानते हैं। वो यह सब कुछ कर सकते है। उधर भरत भाई फ़ोन उठावे तो कोई उनसे हकीकत पूछे। वैसे वो उठाते या उनसे मिलते तब भी किसी की हिम्मत नही कि वो कुछ पूछ सके। वो कब क्लास लेना शुरू कर दें कोई कह नहि सकता। एक बार उनका पीरियड शुरू हुआ नही कि खत्म कब होग कोई नही जानता।

बाद मे मालूम पडा कि उन्हे भरतभाई ने लोजपा को फ़िट करने के लिये सशर्त इजाजत दी थी। पर अपने सुरिन्दर भाई तो अडे ही रहे कि टिकट तो उन्हें ही मिली है। आखिरी दिन तो अपने सुरिन्दर भाई गायब ही हो गये। कांग्रेस के नेता जब चुनाव आयोग मे पहुचे तब मालूम पडा कि सुरिन्दर भाई के बिना तो कुछ भी नही। समय पूरा हो गया। सुरिन्दर भाई का नाम मतदान पत्र मे आ गया। भाड मे गई कांग्रेस और कांग्रेस के नेता। नेता तो बस अपने सुरिन्दर भाई !!!!!

Friday, November 2, 2007

मीडिया मे चुनाव का सट्टा

हालांकि गुजरात मे चुनाव को अभी ४० से अधिक दिन बाकी है, चुनावी अटकलों का दौर पूरे जोर शोर से चल रहा है। कोइ भी मिलता है तो पूछता है कि क्या चल रहा है? आप इसका जवाब दे उससे पहले ही वो बंदा अगला सवाल दाग देता है। और क्या लगता है इस बार? कौन आयेगा?

पत्रकारो की दुनिया हो या छुटभैयो की जमात या फ़िर खाली बैठे लोगो की चौपाल। सभी जगह बस एक ही सवाल।

साफ़ है की सट्टा बज़्जार इससे अछूता नही रह सकता। पर भाई अपन होली दिवाली ताश शायद खेल ले, सट्टा बज़ार तो अपने बस की बात नही। खैर कल टाईम्स आफ़ इंडिया पढा। उसमे सट्टा बज़ार की रेपोर्ट पढी। लगा की बज़ार तो कांग्रेस का ही है। अलग अलग दिनॊ के दाम लिखे थे अपने रिपोर्टर भाई ने अपने खुद के नाम के साथ।

हिमान्शु कौशिक का कहना है कि हमेशा कांग्रेस ही आगे रही है, भले दाम मे कुछ उतार चढाव रहा हो। ३० अकतूबर को भाजपा के ९८ के सामने कांग्रेस के ८४ पैसे ही थे। तहलका के बाद तो भाजपा का दम ११२ को छू गया था। कारण ? तहलका से भाजपा की छवी काफ़ी बिगडी थी।

आज गुजराती अखबार संदेश मे दाम देखे। इस रिपोर्ट मे बिल्कुल ही उलटी तसवीर थी।भाजपा की ९० बैठकों के लिये ३२ से ३७ पैसे और कांग्रेस की ८० बैठको के लिये भी १.८० से १.९०। इस रिपोर्ट मे तो भाजपा की १२५ बैठको के लिये रू६.५० तो कांग्रेस के रू२१।

क्या आप दाम लगाना चाहेंगे कि कौन सा अखबार सही लिख रहा है और कौन किसी और गणित से लिख रहा है ?

अकीक के कारीगरॊं पर सिलीकोसिस का काला साया

गुजरात के खम्भात क्षेत्र का अकीक पत्थर का व्यव्साय काफ़ी पुराना है। उतनी ही पुरानी है उनकी सिलीकोसिस की जान लेवा बिमारी की समस्या। पहले किसी को इस बिमारी के बारे मे मालूम नही था, और आज जब सभी को मालूम है कि यह क्या है, तब भी किसी को इस काम मे जुटे गरी कारिगरों की कोई चिंता नही है।

२० वर्ष की उम्र मे इस काम मे लगे व्यक्ति की ४० की उम्र तक तो हालत खस्ता हो जाती है। पिछले २० से अधिक वर्षो से यह मामला मीडिया मे भी चमक रहा है, पर इसका कोई असर ही नही। हाल ही मे PUCL की एक टुकडी यहा सर्वेक्षण करके आयी। उसके अनुसार इस वर्ष अभी तक १३ व्यक्ति मर चुके हैं, पिछले वर्ष १२ मरे थे।

मरने वालों से अधिक चिंता का विषय है सड सड कर मौत की तरफ़ जाना। खम्भात मे ३०,००० से अधिक लोग इस व्यवसाय मे हैं। इसमे अधिकांश पिछडी जाती के हैं। इनका काम पत्थरों को घिस कर, पोलिश कर चमकाना है।

यदि फ़ेक्टरी कानून को देखे तो वह यहा इन मजदूरे के लिये है ही नही। अगर उसे लागू भी किया जाये तो केवल इन मजदूरो को ही नुकसान होगा। फ़ेक्टरी के बंद हो जाने से जो दो पैसे आज मिलते हैं वो भी बन्द हो जायेंगे । इस समस्या का निदान केवल मात्र इन कारीगरों को बेह्तर काम करने की सुविधा उपलब्ध कराना है।

पर वो कराये कौन?

Thursday, November 1, 2007

नेता सम्मान करने मे जुटे हुए....

कुछ दिन पहले कांग्रेस ने शहर के एक युवा वकील देवांग नानावटी का सम्मान किया । कारण ? नानावटी टाईम्स आफ़ इंडिया के लीड इंडिया कार्यक्रम मे गुजरात मे प्रथम आये थे। देखा जाये तो इस प्रकार के कार्यक्रम को कोइ महत्व नही देता है। खैर, भाजपा क्यो पीछे रहती। भाजपा ने कल नानावटी का सम्मान कर डाला।

कल ही कांग्रेस ने ओलंपिक के लिये रेस वोकिंग के लिये चुने गये बाबुभाई का करमसद ले जा सम्मान कर डाला। उनका सम्मान सरदार पटेल जयन्ति के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम मे किया गया। मजेदार बात यह है कि एक दिन पहले मुक्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनका सम्मान उनके कार्यालय मे किया था!!!

पिछले हफ़्ते कांग्रेस को जब भाजपा की डोक्टेरों की मीटिंग के बारे मे मालूम चला तब एक दिन पहले ही डोक्टेरों की मीटिंग कर डाली। प्रदेश अध्यक्ष भरत सोलंकी ने कह कि पांच डोक्टरों को कांग्रेस को टिकट देगी। सभी को मालूम है कि हर विधान सभा मे आधा दर्जन डोक्टर तो होते ही है।

पर नतीजा यह हुअ कि अगले दिन की मोदीजी की डोक्टेरों की मीटिंग फ़ीकी पड गई।

देखा मतदाता राजा है, पर केवल मतदान के दिन तक!!!!!!!!!

Wednesday, October 31, 2007

सरदार जयंति पर छोटे सरदार नदारद

पूरे गुजरात ने आज सरदार पटेल जयंति मनाई। जगह-जगह सरदार की प्रतिमाओं को फूल मालाएं चढाई। पर खुद को छोटे सरदार कहलवाने वाले अपने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार इस मामले में काफी ठंडे रहे। उन्होंने गांधीनगर में एक कार्यक्रम में भाग ले उनका दायित्व पूरा किया।

मजेदार बात यह है कि सत्ता की बागडोर सम्भालने के बाद मोदी ने छोटे सरदार की छवि को तराशना शुरु किया था। उनके समर्थकों का कहना था कि जिस तरह सरदार ने जूनागढ के नवाब की छुट्टी कर दी थी उसी तरह मोदीजी ने गुजरात में मुसलमानों को सबक सिखा दिया है।

मोदीजी ने कांग्रेस द्वारा सरदार की उपेक्षा की भावना को भी खूब उकसाया। उन्होंने बडे ही व्यवस्थित रुप से यह जताना चाहा कि उनके लिये गांधी, नेहरु नहीं सरदार ही सच्चे देश के नेता थे।

पिछले साल तो सरदार पर दावा करने के लिये उनके जन्मस्थल करमसद में मोदी सरकार और कांग्रेस ने बडे कार्यक्रम कर डाले। कांग्रेस ने आज बडी रैली की। पर मोदीजी की सरकार और सत्तारुढ़ भाजपा ने इसे एक औपचारिकता का रुप दे दिया।

एक असंतुष्ट नेता ने कहा कि क्योकि असंतुष्टों ने उनकी संस्था का नाम सरदार पटेल उत्कर्ष समिति रखा है इसलिये शायद अब उन्हे सरदार शब्द से भी एलर्जी हो गई है !!!

खूब हींग लगाओ तब भी रंग न हो चोखा

अहमदाबाद स्थित कंज्यूमर एजूकेशन एंड रिसर्च सोसायटी ने हाल ही में देश में बिकने वाले हींग की जांच की थी। 17 ब्रांड के हींग में से 12 गुणवत्ता में खरे नही उतरे। उल्लेखनीय है कि अहमदाबाद की इस सोसायटी की प्रयोगशाला अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। अब कभी भी हींग खरीदो तो सोच समझ कर खरीदना.
सोसायटी के अनुसार पावडर श्रेणी में 11 ब्रांड की जांच की गई जिसमें रामदेव प्रीमियम हींग ने सर्वाधिक 69 अंक प्राप्‍त किया था। जबकि दूसरे क्रमांक पर 59 अंको के साथ पार्थ ने तथा तीसरे स्थान पर 43 अंको के साथ बादशाह डीलक्स ने स्थान हांसिल किया है। सेमी सॉलिड श्रेणी में तीन ब्रांड की जांच की गई, जिसमें किसी को एक अंक भी नही मिला। सॉलिड श्रेणी में चार ब्रांडों की जांच में साइकिल ब्रांड को सर्वाधिक 56 अंक मिले। इसके अलावा ग्रेन्यूल श्रेणी में एकमात्र गोपाल ब्रांड की जांच में उसे 42 अंक मिले है। इन चार को ही खरीदने के लिए बेहतर माना है।
इन 17 बांडों में तीक्ष्णता की भी इनकी जांच की गई थी। जिसमें पावडर श्रेणी में रामदेव प्रीमियम की 9.1, पार्थ की ७.२ , बादशाह डीलक्स की 6.5, सॉलिड श्रेणी में लूज-2 ब्रांड की 11.5, लूज-1 की 9.5, साइकिल की 7.5, ग्रेन्यूल श्रेणी में गोपाल की 6.9 प्रतिशत तीक्ष्णता पाई गई।

अधिकतर मे वजन भी कम पाया गया।

Tuesday, October 30, 2007

गुजरात का बाबूभाई ऒलंपिक मे दौडेगा

गुजरात के बारे मे आम धारणा है कि यहां के लोग दाल चावल खने वाले है। फ़ौज मे लडना इनके बस की बात नही है...। पर अब अपने आदिवासी क्षॆत्र के बाबूभाइ ने यह सिद्ध कर दिया है कि यस सब गलत धारणाये है।

२९ साल के बाबूभाई फ़ौज मे हवलदार है। शाकाहारी है, पर फ़िर भी अंतर्राष्ट्रिय स्तर के रेस वाकर हैं। एक महिने मे ही दो बार राष्ट्रिय रेकोर्ड बनाये है अपने बाबूभाई ने। १घंटे २३ मिनट ४० सेकंड मे बाबूभाई २० कि.मी. चले। अपने बाबूभाई ने चार महिने मे उनका परिणाम पूरे सत्रह मिनट सुधारा!!!

उनका नया रेकोर्ड पिछले ऒलंपिक के तीसरे खिलाडी के काफ़ी नजदीक है। भारत मे वे स्टेडियम मे चक्कर काट कर २० कि.मी. चलते है, पर ऒलंपिक मे तो सडक पर चलना होता है। साफ़ है कि उनका रेकोर्ड और सुधरेगा। और जिस तरह उन्होने चार महिने मे उनका परिणाम पूरे सत्रह मिनट सुधारा उससे साफ़ है कि अगले आठ महिने मे इसमे भी सुधार आयेगा। अपना बाबूभाई बेजिंग मे जरूर रंग दिखलायेगा।

जरूरत है कि क्रिकेट के खिलाडियों की तरह लोग अपने बाबूभाई को कहेंगे, चक दे इंडिया ऒलंपिक मे

Monday, October 29, 2007

मोदी जी के मौत के सौदागर

अभी कुछ देर पहले ही अपने मोदीजी का इंटरव्यू सहारा चैनल पर देखा। लगा कि मोदीजी से पहले तो सभी मुख्यमंत्री घसियारे थे। अपने मोदीजी तो विकास पुरूष है। पूरा गुजारात उनका परिवार है। I love Gujarat ही दिख रहा था।

अपने इंटरव्यू लेने वाले प्रसूनभाई की अपने भाई के साथ उनकी दाढी के अलावा और भी कई समानताये देखने को मिली। अपने गुजरात के साढे पांच करोड के एक मात्र भाई नरेन्द्र भाई की तरह वे भी काफ़ी विकास केद्रित लगे। इंटरव्यू मे वे मोदीजी के विकासशील पहलू को उभारने मे उनकी पत्रकारिता की सभी दक्षताऒ को लगा रहे थे। सही बात है कि इंटरव्यू लेने वाले को सामने वाले के अच्छे पहलू उभारने चाहिये.

और अपने मोदीजी भी शांति से हर बात का उनके अपने अंदाज मे जवाब दे रहे थे। लगता नही था कि मोदीजी कभी किसी पत्रकार से बदसलूकी कर सकते है। चेहरे पर एक मुस्कान, होठो पर प्रजा को समर्पण के बोल। जरूर राजदीप बडा बदतमीज आदमी होगा जो अपने मोदीजी को गुस्सा आ गया। करण थापर ने जरूर बद्सलूकी की होगी जो अपने शांत और सौम्य मोदीजी इंटरव्यू छोड चले गये होंगे।

प्रसूनजी ने भी विवादास्पद सवाल किया। आखीर यह इंटरव्यू असली था। उन्होने पूछा २००२ के दंगो का क्या? मोदीजी ने बताया कि उसके बाद चुनाव भी हुए और वो जीत कर आये। और फ़िर मोदीजी शुरू हो गये "मै मौत के सौदागरों को नही छोडूंगा"। प्रसून ने अंग्रेजी स्कूल के अच्छे छात्र की तरह हिंदी मे सवाल किया। फ़र्जी मुठभेड का क्या? पर मोदीजी तो बोलते ही रहे। "मै मौत के सौदागरों को नही छोडूंगा"। कई बार दोहरया। प्रसून्जी भक्ति भाव से उनके विकास पुरूष के सुनते रहे। चुपचाप अच्छे बच्चे की तरह।



राम जाने मोदीजी के मौत के सौदागर कौन हैं!!!!!!!

बेशरमी का तहलका

गुजरात मे आजकाल तहलका मचा हुआ है। हालांकि पूरी दुनिया मे इस तहलका की चर्चा है, गुजरात मे तो लोग इसे महसूस कर रहे है। आशंका प्रेरित भय लोगो के दिलो मे घर करता जा रहा है। लोगो मे एक प्रकार का डर बैठ गया है कि ना जाने क्या हो जायेगा? पुराने दिनो की यादे ताजा करवा रहे हैं ये भयावह द्र्श्य। दिल्ली या अमरीका मे बैठ किसी को इसका ख्याल नही आ सकता।

इसका एक कारण यह है कि पिछले छह वर्षो मे मोदी ने उसकी एक छाप खडी की है कि वो आज का चाणक्य है और वो ध्येय प्राप्ति के लिये कुछ भी करवा सकता है। मुख्य मंत्री मोदी के चाणक्य होने पर विवाद हो सकता है, पर उसकी कुछ भी कर्वा सकने कि क्षमता को उसके विरोधी भी मानते है। उसके समर्थक तो उसकी इस क्षमता का ढोल पीटते ही है। यह छाप गुजरात के लोगो मे दहशत फ़ैला रही है।

भाजपा और कांग्रेस दोनो ही लोगो के इस भय को महसूस कर रहे हैं। पर दोनो ही इस आग मे अपनी वोट की रोटी सेकने मे लगे हुए है। कांग्रेसी इस मुद्दे पर चुप्पी साध कर बैठी है। भाजपाईयो के निवेदन तो लोगो की आशंका को सही साबित कर्ने पर उतरे हुए हैं। प्रदेश प्रवक्ता रूपाणी का तो कहना है कि ट्रेन मे आग लगाने वालों का आपरेशन क्यों नही ? अब आप इसका क्या अर्थ लगायेंगे? हमने तो किया पर औरों का क्या?

उधर तीस्ता सेतल्वाड सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है कि तहलका को एक सबूत के रूप मे लिया जाना चाहिये।

पर क्या किसी ने आम आदमी की दहशत का सोचा है? क्या किसी ने यह मांग की है कि इसका प्रसारण बंद किया जाये जनता के हित मे। कार्यक्रम के टेव मंगा आगे की कार्यवाही की जा सकती है।

Sunday, October 28, 2007

गुजरात मे चुनावी माहौल

दिसम्बर मे गुजरात मे विधान सभा चुनाव होने जा रहें है. आजकल राजनीतिक दलों के कार्यालयो पर टिकट लेने वालों के टोले इकठ्ठे हो रहे हैं.वर्षो बाद कई चेहरे दिखलाई दे रहे हैं.आखिर टिकट की लाटरी की बात जो ठहरी. राजनीति का चस्का ऎसा है कि एक बार लग गया तो उसका रंग छूटता ही नही. उम्र नहि ख्वाहिश जवान रहनी चाहिये.
भाजपा के स्टार प्रचारक अपने मुख्यमंत्री मोदीजी ही है. कांग्रेस के युवा नेता सुबह हेलिकोप्टर ले गुजरात की हवाऒं को रोंदने निकल जाते है. अभी से यह हाल है, कि नेता ही नही उनसे जुडे कार्यकर्ता भी मुश्किल से सो पाते हैं.
पिछले दो दिनों मे कांग्रेस ने २२०० कार्यकर्ताओं को सुना. सभी को टिकट चाहिये. सभी को लगता है कि इस बार तो कांग्रेस सत्ता मे आ ही जायेगी. १८२ बैठको के लिये २३०० उम्मीदवार !! इससे बडा उत्साह वर्धक समाचार और क्या हो सकता है अपने कांग्रेसी नेताओ के लिये.
अपने भाजपाईयो के यहा मामला कुछ अलग है. सबका मानना है कि टिकट तो उसी को मिलेगा, जिसे अपने नरेन्द्र भाई देना चाहेंगे. चंद लोगो को ही मोदीजी की उनकी चाहत के बारे मे मालूम पडा है. वैसे भाजपा के कूंचे पर भी भीड़ जमी रहती है. वहां भी सैकडों की सुनवाई हो चुकी है.
इस बार चुनाव का माहौल एक साल पहले ही शुरू हो गया है. अभी तो ४५ से अधिक दिन बाकी है.देखें आगे आगे क्या होता है....

Tuesday, August 28, 2007

बहन के प्रेमी को ट्रेक्टर से बांध मार डाला

गुजरात की यह घटना एक अपराध कथा से काफ़ी कुछ ज्यादा है. हिन्दी फ़िल्म की तर्ज पर है इसकी कथा. कुछ दिन पहले ही राजधानी गांधीनगर से लगभग १२५ किलोमीटर दूर एक गांव मे तीन भाईयों ने पुलिस स्टेशन के निकट ही बहन के प्रेमी को मार डाला. हिंदी फ़िल्म के एक सीन की तरह पूरे गांव के लोग यह सब कुछ देखते रहे. कोइ कुछ नही बोला. कोइ बचाने नही आया.
ट्रेक्टर से बांध इस युवक को घसीटा गया. जब वो बेहोश हो गया तब उसे छोड ये सब भाग गये. उसने पानी मांगा, किसी ने पानी भी नही दिया. अखिरकार कीचड के पानी को चुल्लु मे भरता हुआ यह युवक मर गया.हिंदी फ़िल्मों की तरह पुलिस कई घंटो के बाद आयी. पुलिस अफ़सर फ़ोन बंद कर बैठ गये.
उसका कसूर केवल इतना था कि उसने इनकी बहन से प्यार किया था. दोनो कुछ दिन के लिये लुप्त हो गये थे. एक दिन पहले ही वापिस आये थे. दोनो पटेल जाति के ही थे.ना जाति का फ़र्क ना ही कोइ और अंतर. बस पैसे की खाई.
इन भाईयों के लिये बहन उनकी जायजाद थी। गांव के लोगो के लिये बुरे लोगों के मूंह नही लगने वाली बात थी। सब देखते रहे कोइ कुछ नही बोला. अपने पुलिस वालों के लिये तो क्या कहिये.अखबारों मे बात उछलने से तीन दिन बाद पुलिस ने कुछ लोगो को पकडा है. पर क्या गांव के लोग गवाही देंगे? जो नामर्द बन पूरी घटना देखते रहे और उस युवक को प्यास से तडफ़ते देखते रहे, उनसे आप क्या आशा रखते है ? और पुलिस जो घटना के समय गायब हो गई उससे आप क्या आशा रखते हैं ? क्या वो इन भाई लोगों के विरुद्ध पक्का केस बनायेगी ?
और आप लोगों का हमारी संवेदनहीनता के बारे मे क्या मानना है ?

मोदी जी का गुजरात की छात्राओं को रक्षाबंधन उपहार

गुजरात में यह चुनावी वर्ष है। कांग्रेस और सत्तारुढ़ भाजपा दोनों ही उनके लोक लुभावने वचनों से गुजरात के मतदाता को पटाने में लगे हुए हैं।
साफ है अपने मोदी जी का हाथ उपर है। सत्ता में जो ठहरे। बेचारे कांग्रेसी तो यह कहते है कि सत्ता में आए तो यह देगें, वो देगें। मोदी जी तो कह देते हैं यह लो, वो लो। विधानसभा में बजट था इस वर्ष का। घोषणा कर डाली कि लो इतने हजार करोड़ अगले पांच साल के लिये। हम कभी अर्थशास्‍त्र के छात्र नही रहे, पर विधानसभा रिपोटिंग का एक ही गुर सीखा है। विधानसभा जो मंजूर हो वही खर्चा हो सकता है और वह भी उसी साल में। खैर अपने मोदी जी है। वे कुछ भी कर सकते है। फिर परिणाम भले ही शून्य हो!!
कन्या शिक्षा के बडे हिमायती है। नारी सम्मान उनकी एक प्रिय अभिव्यक्ति है। वैसे हमारे गुजरात में पिछले तीन महिनों में आधा दर्जन से अधिक महिलाएं निर्वस्‍त्र हो दौड़ लगाने की धमकी दे चुकी हैं।
शिक्षा मंत्री आनन्दीबहन पटेल तो हर साल प्रवेशोत्सव आयोजित करती हैं। हमारा गुजरात तो उत्सवों का प्रदेश है। मोदी जी ने यह नारा प्रख्यात कर दिया है।
मोदी पुराण इतना विशाल है कि कोइ भी रास्ता भटक जाता है। हम बात कर रहे थे रक्षाबंधन भेट की और पहुंच गये उत्सवों तक। मोदी जी के चक्कर में अच्छे अच्छे भटक जाते है।
मोदी जी ने घोषणा की है कि अब राज्य में पढ़ने वाली हर छात्रा राज्य की बस मे मुफ्त स्कूल कॉलेज जा सकेगी। माध्यमिक स्कूल से कॉलेज तक सभी छात्राओं को इस मुफ्त यात्रा का लाभ मिलेगा।
क्योंकि राज्य की बसें शहरों में नही चलती इसलिये गांव की छात्राओं को यह लाभ मिलेगा। फिर भी संख्या कम नहीं है।पूरे अढा़ई लाख।
देखा हमारे मोदी जी चुनावी वर्ष का तोहफा। एक कांग्रेसी बोला पिछ्ले चार वर्ष में क्यों नहीं किया। अरे भई अगर पहले यह कर देते तो वोट में कैसे भुनाते इसे। फिर चार वर्ष तक उनकी सरकर को यह बोझ उठाना पड़ता अब तो घोषणा कर दी आगे राम जाने।

Monday, August 27, 2007

अमेरीका से आए सी.के.पटेल

आजकल बरसात के मौसम के साथ चुनावी मौसम भी पूरे जोर शोर से है गुजरात में। तरह-तरह के नेता मीडिया के सामने आ रहे है। कुछ तो नेता हैं तो कुछ नेता बनने को छ्टपटा रहे हैं।
अपने कांग्रेसी सी.के.पटेल ने आज मीडिया से मुलाकात कर ली। अगले दो वर्षों के लिए नेशनल फेडेरेशन इन्डियन-अमेरिकन एसोशियेशन के लिए चुने गये हैं।
बोले भारत को न्युक्लीयर ट्रीटी कर लेनी चाहिए। अमरीका में रहने वाले भारतीयों का यहीं मानना है। बोले कि वे राष्ट्रीय हित में कह रहे हैं। कोई राजनीति नहीं है यह।
पटेल जी भले ही खुद को राजनीति से दूर रखने की बात करते हों, हकीकत यह है कि पटेल जी पिछले कुछ साल से भारत में छुटभैय्या बनने के चक्कर में है। अमरीका में भले हीं वे एन आर आई में तोप हों वहां की राजनीति में तो कुछ नहीं।
लोकसभा चुनाव में साबरकांठा की टिकट लेने की काफी कोशिश की थी। पर कपडा़ मंत्री शंकरसिंह वाघेला ने अपने मघुसुदन मिस्‍त्री को टिकट दिलवा उनका पत्ता कटवा दिया था।
अब विधानसभा चुनाव आ रहे हैं। अपने पटेल जी वापिस सक्रिय हो गये हैं। अब वे साबरकांठा की किसी विधानसभा टिकट के लिए सक्रिय हैं।
पिछली बार तो शंकरसिंह ने उनका पत्ता साफ किया था, इसलिए इस बार शायद अपने पटेल जी अपने न्युक्लीयर ट्रीटी के शस्‍त्र से सब बाधाएं पार कर कांग्रेस की टिकट पा जाए। आखिरकार कांग्रेस को भी साम्यवादियों से इस मुद्दे पर लड़ने के लिए शस्‍त्र चाहिए!

Saturday, July 28, 2007

दो बार इस्तीफ़ा देने के बाद भी बने हुए हैं मंत्री अपने भाई..

राजनीति में इस्तीफ़ा बडा ही सशक्त शस्त्र है। बस इस्तीफ़े के धमकी से ही काम चल जाता है। लोग देते नही है। मालूम नहीं कब स्वीकार हो जाए।

पर अपने भाई तो भाई हैं। उनके दोस्त और दुश्मन सभी उन्हे भाई कहते हैं वैसे उन्हे भी यह सम्बोधन काफ़ी प्रिय है। वैसे तो उनके दो दो चुनाव जीतने के बावजूद भी वो मुम्बई पुलिस की भाई की लिस्ट में ही हैं।

अपने भाई है गुजरात के पुरषोत्तम सोलंकी। मोदीजी के मंत्रीमंडल में मछली मंत्री! सरकारी गनमैन हो या न हो भाई के अपनी सिक्योरिटी तो हमेंशा साथ रहती है।

उन्होने उनकी जाति की दो युवतियों के बलात्कार के विरोध में दो बार इस्तीफ़ा दे दिया। कार और बंगले का भी उपयोग करना बंद कर दिया। गांधीनगर में सचिवालय की तरफ़ मुंह करना भी बंद कर दिया।

एका एक कल सभी समाचार पत्रों में उन्होने एक प्रेसनोट भेज डाली। पाकिस्तान की जेलो से भारतीय मछुआरों को छुडवाने के लिये । सभी पत्रकार आश्चर्यचकित! कई मित्रो ने फ़ोन कर डाले। पूछा भाई ये क्या?

अपने भाई भी कम थोडे है। बोले हमने इस्तीफ़ा दिया यह एक हकीकत । पर साथ ही यह भी एक हकीकत है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई ने अभी तक स्वीकार नही किया है! और मजबूरन में मंत्री हूं !!

गुजरात के सांसद जेटली गुजरात आ रहे है!

अरुण जेटली गुजरात के सांसद हैं। उनका गुजरात आना एक समाचार बन जाता है। वो कब आते है, कब चले जाते है, क्या कर जाते है वह शायद केवल भाजपा कार्यालय के रिकार्ड की बाबत है, जिस तरह संसद में उनका गुजरात का प्रतिनिधि होना।

गुजरात भाजपा के मीडिया को आर्डिनेटर और जेटलीजी के अहमदाबाद के एक निकटतम सूत्र यमल व्यास बतलाते है कि जेटलीजी पिछ्ली बार अप्रैल में आए थे। प्रयोजन था चेम्बर में एक कार्यक्रम । वैसे भी राज्यसभा सांसदो को आम आदमी से नाता ही क्या?

पहले महिने दो महिने में चक्कर मार लेते थे, पर जबसे उन्होने माधुपुरा बैंक का कई हजार घोटाला संभाला है सब कुछ दिल्ली में ही निपटा लेते हैं। वो घोटालेबाजो की पैरवी कर रहे हैं। क्योंकि केस सुप्रीम कोर्ट में था इसलिये वे घोटालेबाजो को दिल्ली में ही मिल लेते है।

यह बैंक घोटाला इतना बडा था कि गुजरात की १०० से ज्यादह बैंक इसके कारण डूबने के कगार पर आ गई। नतीजा यह हुआ कि इससे लोगो ने जेटलीजी का अहमदाबाद आना ही बंद करवा दिया!

खैर अब जब वो आ रहे हैं तो मोदीजी अपनी जेड प्लस सिक्योरिटी दे कर भी उन्हे बचायेंगे। वैसे मोदी-जेटली रिश्ता काफ़ी प्रेम भरा है। पर अब तो अपने जेटलीजी मोदीजी के भाजपा इलेक्शन एजेंट बन कर आ रहे हैं।

राजनाथसिंहजी ने आगामी विधानसभा चुनाव की बागडोर तो मोदी जी के हाथ में सौंपते हुए कहा कि आपके प्रिय अरुण जेटली इस कार्य में आपके सहयोगी होंगे।

Friday, July 27, 2007

गुजरात में जनसंघ ने छेडी भाजपा के विरुद्ध जंग

गुजरात में चुनावी दौड में जनसंघ ने भी उसके घोडे उतारने की तैयारीयां शुरु कर दी है। उसके प्रदेश अध्यक्ष गोपाल भाई पटेल ने हाल ही में एक फ़ोर कलर पुस्तिका भी प्रकाशित भी की है। इसमे जनसंघ और हिन्दुत्व के बारे में कई लेख भी है।

सबसे अधिक ध्यान खेंचने वाला एक रंगीन चार्ट है जो यह बताता है कि भाजप उसकी मूल संस्था जनसंघ से कितना अलग और गिरा हुआ है। स्थापक के बारे में लिखा गया है कि जनसंघ की स्थापना भारत केसरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और राजश्री बलराज मधोक जैसे महानुभावो ने की तो भाजप की स्थापना अटल आडवानी की जुगल जोडी ने की।

दल के ध्वज के बारे में इनका कहना है कि जनसंघ का ध्वज शत प्रतिशत शुद्ध भगवा है जबकि भाजपा के झंडे में ३३ प्रतिशत हरा रंग मुस्लिम तुष्टिकरण का संकेत है। जनसंघ के प्रेरणा स्त्रोत है डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे हिन्दुवादी नेता जबकि भाजपा के प्रेरणा स्त्रोत है गांधी, नेहरु, जयप्रकाश नारायण और सिकंदर बख्त जैसे नेता।

लक्ष्य के बारे में उनका कहना है कि जनसंघ का लक्ष्य हिन्दु राष्ट्र बनाना है और भाजपा का लक्ष्य मुस्लिम तुष्टिकरण कर किसी भी किंमत पर सत्ता हांसिल करना। जनसंघ के पास बलराज मधोक और प्रफ़ुल गोरडिया जैसे प्रतिभा संपन्न स्वच्छ, निडर और बहादुर नेता है तो भाजपा बाजपाइ, आडवानी जैसे सत्ता लोलुप, स्वार्थी, भ्रष्टाचारी और बिनकार्यक्षम शासन प्रणाली नेताओ का शंभु मेला है।

भैया चुनाव है, इस वर्ष चुनाव है ।

Thursday, July 26, 2007

फ़ेल नही हो पाने से नाराज छात्र

गुजरात की सौराष्ट्र युनिवर्सिटी का एक छात्र बडा दुखी है। उसकी तमाम कोशिशो के बावजूद वह फ़ेल होने मे सफ़ल नही हो सका। इस छात्र अमित पंड्या ने युनिवर्सिटी से पूछा है कि उसके गलत और वाहियात जवाबों के बावजूद उसे पास क्यों किया गया है।

उसका कहना है की उसने केवल ४० नंबर के प्रश्नो के ही जवाब लिखे थे। वे भी गलत सलत। इसके बावजूद उसे पास कर दिया गया है। क्यों ? क्या मै युनिवर्सिटी का दत्तक पुत्र हू? उसने युनिवर्सिटी को प्रश्न किया है। आमित की नारजगी का कारण जोरदार है।

MA -I हिन्दी की परीक्षा मे उसके तीन पेपर खराब गये थे। परिणाम अच्छा लाने के लिये उसने सोचा कि वो फ़ेल हो जाये और अगले साल बेहतर तैय्यारी के साथ परीक्षा मे बैठे। इसलिये उसने गलत सलत जवाब लिखे। और केवल ४० नंबर के प्रश्नों का ही जवाब लिखा।

उसका कहना है कि पहले तीन प्रश्नों का जवाब ही नही लिखा। चौथे प्रश्न के जवाब मे उसने अपनी ही व्याख्यायें ही लिखी और लेखकों के नाम पर अपने दोस्तों के नाम लिख दिये। प्रश्न था काव्यानुवाद की समस्या के बारे मे।अमित ने अपने मित्रों के नाम और उनके घर के पते लिख डाले। प्रश्न पांच के सवाल के जवाब मे अमित ने रजनीश और गौतम बुध्ध के बारे मे लिखा और जब इससे भी संतोष नही हुआ तो क्यों की सांस भी कभी बहु थी सीरियल के बारे मे लिख डाला।

उसने युनिवर्सिटी से पूछा है कि सभी सवालों के जवाब लिखने वाले फ़ेल हुए है तो मै कैसे पास हो गया? युनिवर्सिटी के अधीकारियों के होश उड गये है अमित के खुले प्रश्नों से ।

Wednesday, July 25, 2007

दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के जन्मदिन

चुनाव के दिनों मे नेताऒ के जन्मदिन की बात ही अलग है पिछ्ले चार दिनों में गुजरात के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने उनके जन्मदिन मनाए। ये है शंकरसिंह वाघेला और केशुभाई पटेल । दोनों में काफी समानताए है ।

दोनों मूलत: संघ परिवार से है । गुजरात के अन्य मुख्यमंत्रियो को कौन पूछता है। माधवसिंह सोलंकी, दिलीप परिख, छबील्दास मेहता, सुरेश महेता, सब ना जाने कहां खो गये हैं ।

दोनों ही राजनीति में सक्रिय है । वाघेला मनमोहन सिंघ सरकार में कपडा मंत्री है। केशुभाई राज्यसभा के सदस्य है और गुजरात की राजनीति में काफी सक्रिय है। मजेदार बात तो यह है कि इन दोनों का दुश्मन एक ही है, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ।

शंकरसिंह वाघेला के गांधीनगर स्थित आलीशान बंगले “वसंत वागड“ में तो बसंत का ही माहौल था। साढे नौ से डेढ बजे तक में हजारों की भीड़ । बगंले से एक किलोमीटर दूर लम्बी पार्किंग की भीड़ । हमेशा ही शंकरसिंह बापू के दर्शन के लिए १००-१५० की लाईन ।

हमें तो बापू के जन्मदिन पर एक चीज बडी ही जोरदार लगी । खाने के दस काउन्टर । हलवा, आम के मठा के साथ तरह तरह के व्यंजन । लोग आते रहे ,बापू के दर्शन के बाद भोजन कर देर तक बतियाते रहे।

हर साल वसंत वगडा में २१ जुलाई को बहार आती है। इस बार तो इस बहार की बात ही कुछ और थी। बापू के एक विशवस्त ने इसका राज खोला । इस वर्ष चुनाव हैं। सही बात है टिकट चाहिए तो अपना प्रभाव यहां बताओ।

केशुभाई भी वाघेलाजी की तरह जमीनी नेता हैं। इस बार उनके यहां नेताओं को तो छोडों कार्यकर्ता भी नहीं दिखाई दिये। हाँ अपने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदीजी जरुर आये। आने से पहले ही उन्होने फोटोग्राफरों और चैनलवालों को केशुभाई से जन्मदिन हैडंशेक के एतिहासिक फोटो के लिये न्योता दे दिया था।

सब आए। पर केशुभाई ने मोदीजी के साथ फोटो खिचवाने से इंकार कर दिया। साफ है एक दिन पहले ही मोदीजी ने उनके पांच प्यारों को शहीद कर दिया था। अपने पांच प्यारों के खून से रक्तरंजित मोदी से तो वो बात भी नहीं करना चाहते । वो तो अतिथि देवो भव: के भाव से उन्होने मोदीजी को उनके बंगले में आने दिया।

आज सभी कह रहे हैं कि कौन जायेगा केशुभाई के बंगले । चुनाव का वर्ष है, टिकट चाहिए। केशुभाई की छाया पडना मतलब है टिकट कट जाना !!

Tuesday, July 24, 2007

एक सम्‍पादक जो सभी रचनाओं का उपयोग करता था

प्रत्‍येक लेखक की इच्‍छा होती है कि उसकी सभी रचनाएं छपें। पर पत्रकारिता में यह सम्‍भव नहीं। इसीलिये तो हर पत्रकारिता के छात्र को पहले दिन ही कहा जाता है कि कभी भी रचना के वापिस लौटने से नाराज न हों।


खैर, हम यहां एक ऐसे सम्‍पादक के बारे में लिख रहे हैं जिसके बारे में यह मशहूर है कि वह कभी भी किसी रचना को वापिस नहीं लौटाता था। वह उसके कार्यालय में आई प्रत्‍येक रचना का उपयोग करता था।


यह था "वीसमी सदी" मासिक का सम्‍पादक हाजी मोहम्‍मद अल्‍लारखा शिवजी। १९१६ में शुरु हुआ यह प्रकाशन पांच वर्ष तक निकला। इसका हर अंक लाजवाब था। जैसा कि हम अपनी पिछली पोस्‍ट में लिख चुके हैं कि इसके रद्दी के अंकों ने कुछ मित्रों को इतना प्रेरित किया कि इस रविवार को उन्‍होंने इसका डिजीटल अवतार लांच किया।

मासिक में प्रत्‍येक रचना उसके हाथों से लिखी होती थी। आज के जमाने मे टाइम और न्यूजवीक कोपी राइटर रखते है , हाजी उस जमाने मे यह विचार लाया था उस जमाने में भी वह लेखकों को अच्‍छे पैसे देने में मानता था। दीपोत्‍सव अंक में उन्‍होंने गोवालणी नामक लघु कथा छापी। वह गुजराती की पहली लघु कथा थी। लोगों ने उसकी बहुत तारीफ़ की। हाजी ने अपने कुछ मित्रों को कहा को यदि मेरे पास पैसे होते तो मैं इसके लेखक रा।मलयानिल को सौ रुपये देता।

किसी सम्‍पादक को यह लगे कि उसने लेखक को कम पैसे दिये हैं यह एक बहुत ही बिरली घटना है। एक बार उन्‍होंने अपने एक लेखक मित्र के समक्ष इसका राज खोला। वो बोले मैं पैसे उडाता नहीं हूं। मैं मेरे प्रकाशन को लाभ के लिये भी नहीं करता हूं।


पर, उन्‍होंने कहा, मेरी इच्‍छा है कि मेरे गुजरात में कोई बर्नाड शो बने, कोई जी चेस्‍टटर्न बने, कोई एच जी वेल्‍स बने। ये नामक प्रखर विचारकों के हैं। आम आदमी उन्‍हें नहीं पढता। पर वीसमी सदी में हाजी का उद्देश्‍य था लोगों को मनोरंजक शैली में चित्रात्‍मक स्‍वरुप में ओतप्रोत जानकारी देना।
एक बार हाजी अपने मित्रों को नाचने गाने वाली महिलाओं के क्षेत्र में ले गये। एक लटके झटके वाली महिला आई। इनके मित्र काफ़ी अचम्‍भित। हाजी यहां क्‍यों लाएं। हाजी ने अपने इस मित्र, एक बहुत बडे चित्रकार, रविशंकर रावल को कहा कि घबराओ मत। मैं तुम्‍हें यह बताने लाया हूं कि, यहां की महिलाएं भी वीसमी सदी पढती हैं।


उस महिला ने तुरंत कहा कि हाजी इस बार का अंक नहीं मिला। हाजी ने कहा कि वो इस बार का अंक खुद लाये है। क्‍योंकि उनकी प्रति डाक में वापिस आई है !! ऐसे थे हाजी।


उनके ४,००० से अधिक सशुल्‍क ग्राहक थे। ए एच व्‍हीलर जो भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों को महत्‍व नहीं देता था वह भी वीसमी सदी रखता था। रु १५-१६ मासिक तन्‍ख्‍वाह वाले उनके चाहक मिल कर अठन्‍नी खर्च कर वीसमी सदी खरीदा करते थे।


यह सब हमने वीसमी सदी के डिजीटल स्‍वरुप के कार्यक्रम में दी गई जानकारी के आधार पर लिखा है। आप भी http://www.gujarativisamisadi.com/ क्लिक कर इस पत्रिका की भव्‍यता का नजारा देखिये।

Monday, July 23, 2007

गुजरात भाजपा की महाभारत के पात्र

गुजरात भाजपा मे चल रहे महाभारत को कौन नही जानता। कल ही आला कमान ने पांच बागियो को निलम्बित कर दिया। इन पांच पांडवों से पहले दो तो निलम्बित की सूची मे है ही। आप कह सकते हैं- सप्तरंगी विरोध बागियों का । यदि आप लिंग भेद ढूंढना चाहते हैं तो आप सफ़ल नही होंगे। इसमे दुर्गा स्वरूप रमीलाबेन देसाई भी है।

अब जब महाभारत चल रही है तो पात्र तो होंगे ही। बागी गोरधन झडफ़िया ने इन पात्रों की जो सूची जारी की है वह आज के गुजरात के अखबारों मे काफ़ी चमक रही है।

इस महाभारत के धृतराष्ट्र हैं, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी , दुर्योधन हैं, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ,भीष्म है पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ।पूर्व केंद्रिय कपडा मंत्री काशीरम राणा को दिया गया है द्रोणाचार्य का नाम और पूर्व मुख्य मंत्री सुरेश महेता बने है कृपाचार्य ।
प्रदेश अध्यक्ष पुरुशोत्तम रूपाला हैं इस महाभारत के कर्ण और प्रभारी ओम माथुर बने शकुनी मामा ।पूर्व मंत्री गोरधन झडफ़िया है युधिष्टर और पूर्व मंत्री बेचर भादाणी का पात्र है भीम का , बावकु उघाड को दिया गया है नाम सहदेव, विधायक बालु तंती की भूमिका है नकुल की , विधायक सिद्धार्थ परमार को नाम दिया गया है अभिमन्यु। कार्यकर्ता बने है द्रौपदी और गुजरात की जनता कृष्ण।
रमीलाबेन को कोई पात्र नही दिया गया है शायद इस्लिये कि वे स्वयं को रणचंडी घोषित कर चुकी है।

कुछ सुर्खिया भी जोरदार हैं:

भाजपा मे महाभारत, पांच पांड्वों को बाहर निकाल दिया

अरुण जेटली ने पहले माधुपुरा बैंक डुबोई अब भाजपा डुबोयेगा

जरासंध मोदी के अत्याचार बहुत हुए अब उसका वध जरूरी, सांसद कथीरिया

पार्टी शुद्ध हुई अब चुनाव की तैय्यारी करो, रूपाला

एक कुलपति जो स्‍कूल में भी नहीं पढा

यह कोई स्‍कैंडल नहीं है। यह है कहानी गुजरात विद्यापीठ के नये कुलपति नारायण देसाई की। महात्‍मा गांधी के सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई ने गुजरात विद्यापीठ के कुलपति का कार्यभार संभाल लिया है।

८३ वर्षीय नारायण देसाई आज अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ में आये। नारायण देसाई आजकल उनकी गांधी कथा के लिये मशहूर हो रहे हैं। उनका कहना है कि गांधी संदेश फ़ैलाने का यह अभियान ही उनका मुख्‍य कार्य है।

गुजरात विद्यापीठ का उनका कार्य उसी सीमा तक होगा जहां तक वह उनके इस मिशन में बाधा नहीं बनता। वे विद्यापीठ के कामकाज में दखलंदाजी नहीं करेंगे। साथ ही उन्‍होंने यह भी स्‍पष्‍ट किया कि उनकी भूमिका वर्ष में सात दिन की हाजरी के नियम तक सीमित नहीं रहेगी।
नारायण देसाई गांधीवादी है यह तो सभी को मालूम है। पर, उनकी सबसे बडी खासियत यह है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं पाई है। स्‍कूल में एकाध वर्ष ही उनकी औपचारिक शिक्षा है।महात्‍मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के खुले विद्यापीठ में उन्‍होंने निरंतर शिक्षा प्राप्‍त की है। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। अभी तक उन्‍होंने लगभग ५० पुस्‍तकें लिखी हैं। उनकी मशहूर पुस्‍तकों में "संत सेवता सुकृत वाद्ये" "रवि छबि" "टु वार्डस ए नान-वायलेंट रिवोल्‍यूशन" "मने केम बिसरे रे" "अग्‍नि कुंड में उगा गुलाब" और मारु जीवन एज मारी वाणी भाग-१ से ४ शामिल है।

नारायण देसाई ने जीवन के अधिकांश वर्ष खादी, नई तालीम, भूदान, ग्रामदान, शांति सेना एवं अहिंसक आंदोलन में बिताए हैं। उन्‍होंने सर्वोदय कार्यकर्ता, पत्रकार, एवं शिक्षाविद के रुप में भी यशस्‍वी कार्य किए हैं। "भूमिपुत्र" के स्‍थापक संपादक एवं "सर्वोदय जगत" (हिन्‍दी) एवं विजिल (अंग्रेजी के संपादन-प्रकाशन) में सहयोग दिया है। आपातकाल के दौरान वे भूमिगत रहकर कार्यरत थे। नारायण देसाई ने संपूर्ण क्रांति विद्यालय, वेलघी द्वारा सच्‍चे अर्थ में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं वैकल्‍पिक जीवन शैली के निर्माण का कार्य किया है।

उप-कुलपति सुदर्शन अयंगर का कहना है कि देसाई वैकल्पिक शिक्षा के जीवन्त उदाहरण हैं ।

फ़र्जी मुठभेड में गिरफ़्तार वणझारा जब जेल से बाहर निकले

फ़र्जी मुठभेड मे गिरफ़्तार डग डी जी वणजारा और अन्य को आज अदालत मे पेश किया गया। वणजारा का अंदाज एक हीरो सा था और उससे मिलने भी काफ़ी लोग आये थे। पेश है कुछ तसवीरें ।





सरदार पटेल ने जब विक्‍टोरिया गार्डन में तिलक का बुत रख दिया

आज बाल गंगाघर तिलक का १५१वां जन्‍मदिन है। अहमदाबाद से उनका काफ़ी महत्‍वपूर्ण सम्‍बन्‍ध रहा है। आज से ९९ वर्ष पूर्व उन्‍हे काफ़ी रहस्‍यमय तरीके से साबरमती जेल में लाया गया था।
हालांकि वे इस जेल में ५३ दिन रखे गये, यहीं उन्‍होंने स्‍वराज हमारा जन्‍मसिद्ध अधिकार है, हम स्‍वराज लेकर रहेंगे का नारा दिया था।
इस स्‍वतंत्रता सेनानी को उनकी पुस्‍तक गीता रहस्‍य के लिये भी जाना जाता है। उनकी मृत्‍यु १ अगस्‍त १९२० में हुई। १९२४ में अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में उनका बुत रखा गया। विक्‍टोरिया के स्‍तूप के समान्‍तर।
उस समय सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे। यह बुत उन्‍होंने लगवाया था। इस अवसर पर गांधीजी ने कहा था कि सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्‍हें अभिनन्‍दन देता हूं।

रद्दी के ढेर से उभरा बीसवीं सदी का डिजीटल अवतार

कुछ वर्ष पूर्व मुम्बई मे एक उध्योगपति को सन्डे बाज़ार मे एक बहुत ही आकर्षक मासिक की कुछ प्रतियां मिली। उध्योगपति नवनीत शाह को आज भी याद नहीं कि ये प्रतिया उनके हाथ कब लगी। इसी प्रकार कुछ समय पहले अहमदाबाद के एक पत्रकार धीमंत पुरोहित को एक सचित्र प्रकाशन की कुछ प्रतिया हाथ लगी। इन दोनो सहित्य के रसियाओं ने अपने अपने प्रकाशन के और अंकों की खोज शुरू कर दी।

और आज से लगभग दो वर्ष पूर्व गुजरात के एक मशहूर कोलमनिस्ट रजनी पंडया को इन दोनो ने अपनी इन अंकों की खोज के बारे मे कहा। उसे मालूम पडा कि ये दोनो एक ही मासिक के अंको के ढूंढ रहे थे। यह था गुजराती भाषा मे तब बम्बई से प्रकाशित होने वाला मासिक वीसमी सदी अर्थात बीसवीं सदी। १९१६ मे शुरू हुआ यह मासिक केवल पांच वर्ष ही निकला यानि की केवल ६० अंक।पर इसके सम्पादक की सोच, प्रकाशन की गुण्वत्ता के कारण १९१६ का यह मासिक ९० वर्ष बाद भी पत्रकारिता का एक स्तम्भ है।

उस जमाने मे इसके मालिक एंव सम्पादक हाजीमोहम्मद अल्लारखा शिवजी ने बीसवी सदी को फ़ोर कलर मे निकाला था। उनका नाम वे अपने दादा के नाम के साथ लिखते थे, और यह इस बात का परिचय देता था कि उनके दादा हिन्दु थे। इसका टाईटल पेज इंगलैंड मे बनता था और इसके १०० पन्नों मे १२५ चित्र होते थे और वह भी गुण्वत्ता वाले।

हाजीमोहम्मद खुद को बीसवीं सदी का अधीपती कहते थे। उनके विचार स्पष्ट थे। पाठक को रोचक शैली मे सचित्र पठनीय सामग्री देना।

खैर, अब इन तीनों, नवनीत भाई, धीमंत और रजनी पंडया ने बाकी के अंकों की खोज जारी रखी। अथक प्रयत्नों के बाद वे केवल ५५ अंक ही इकठ्ठे कर पाये। नवनीत भाई के आर्थिक सहयोग और बिरेन पाध्या के तकनीकी संसाधनों की मदद से इन ५५ अंको को डिजीटाईज किया गया । और इस डिजीटल अवतार का अनावरण कल शाम को अहमदाबाद में एक भव्य कार्यक्रम मे हुआ। इस वेबसाईट को लोंच किया ९७ वर्षीय रतन मार्शल ने । अपनी पूरी सलामत बत्तीसी वाले मार्शल की आवाज मे किसी फ़ौजी की बुलन्दी खनकती है। मार्शल की खासियत यह है कि गुजराती पत्रकारिता का ईतिहास लिखने वाले मार्शल की ५७ वर्ष पूर्व लिखी गई पुस्तक का कोई सानी नही है।

इस वीसवीं सदी को डिजीटल अवतार दिलाने वाले मित्रों को एक बात का बहुत दुख है। उनके तमाम प्रयत्नों के बावजूद वे हाजी के वंशजो को ढूंढ नही पाये हैं। उनके इन प्रयत्नों के बारे मे भी हम लिखेंगे। यदी आप किसी को यह जान्कारी मिले तो आप हमे या इस प्रकाशन की वेबसाईट पर दे सकते है। यह वेबसाईट वीसवीं सदी के सौंदर्य और भव्यता की झलक देती है। पीले पडे कागजों मे बिखरी हाज़ी की पत्रकारिता कहती है- खंडहर बता रहें हैं कि इमारत कभी बुलंद थी। इस वेब साईट का URL है, http://www.gujarativisamisadi.com/ भले ही आपको गुजराती नही आती हो, हाजी का सौंदर्य बोध तो आपअको उसी तरह लुभायेगा जिस तरह उसका जादू नवनीत भाई और धीमंत के सिर चढ कर बोल रहा है ।

Saturday, July 21, 2007

अहमदाबाद में अब एक और एफ़ एम रेडियो

अहमदाबाद वासियों को अब एक और एफ़ एम रेडियो मिल गया है। यह है ९४.३ माई एफ़ एम दिल से। अभी कुछ समय पहले ही (दोपहर तीन बजे) इस एफ़ एम रेडियो का प्रसारण शुरु हुआ।

टाइम्स के रेडियो मिर्ची की टक्कर में भास्कर ग्रुप का माई एफ़ एम दिल से। रेडियो मिर्ची २४ घंटे है जबकि माई एफ़ एम सुबह सात से रात के बारह तक होगा।

घोषणा के अनुसार यह कार्यक्रम ७० किमी की त्रिज्या में सुना जा सकता है। इस ग्रुप के अन्य भारतीय शहरों में एफ़ एम है इसलिए श्रोताओं को वैरायटी मिलने की पूरी संभावना है।

कुछ भी हो अब अपने अमदावादियों को बोरियत का तीसरा विकल्प मिल गया है।

Friday, July 20, 2007

जब विधानसभा मे मोदी जिन्ना भाई भाई गूंजा

गुजरात विधान सभा का दो दिन का मानसून सत्र बडे ही चटपटे अंदाज मे खत्म हुआ। पूरे दिन ही कांग्रेसियों की नारेबाजी गूंजती रही। वाक आउट का नया अंदाज देखने को मिला। अपने कांग्रेसी भाई मोदी सरकार की हाय हाय बोलते सदन के बाहर जाते और अगले पल वापिस आ जाते। ये था अपने कांग्रेसियों का सांकेतिक वोक आउट।
इस सब आवन जावन मे अध्यक्ष ने दो सद्स्यों को बाहर भी निकाल दिया। पर अपने भाजप के बागी धीरु गजेरा का तो अंदाज ही अलग। खडे हो गये सरकारी मैगेजीन गुजरात को हाथ मे ले और बोले इसमे ये जिन्ना के लेख का क्या? बस कांग्रेसी तो थे ही टूट पडने को तैय्यार ।शुरू हो गये नारे मोदी-जिन्ना भाई भाई और सांकेतिक वोक आउट ।
पर इस दौरान अपने धीरुभाइ को बाहर नही निकाला गया। अध्यक्ष ने सिपाही भेज उन्हे उनकी कुर्सी पर बिठवा दिया। और बाहर अपने कांग्रेसी लगे चिल्लाने आडवाणी-जिन्ना भाई भाई,जशवंत मसूद भाई भाई ...
और थोडी देर मे गजेरा चुपचाप खिसक लिये। भैय्ये इसे राजनीति कहते हैं।

Wednesday, July 18, 2007

गोल्फ़ क्लब से अपना स्टेटस बनाओ

आज गांधीनगर मे अपने शिब्बू भाई मिल गये। आजकल वो गांधीनगर के एकमात्र रेसोर्ट और स्पा, केम्बे रेसोर्ट एंड स्पा मे है। हमने पूछ ही लिया शिब्बू भाई क्या चल रहा है? आजकल कहां घूम रहे हो। अपनी मलयाली अंग्रेजी मे बोले कि अब वो मैनेजर गोल्फ़ हैं केम्बे रेसोर्ट और स्पा मे । काम क्या करते हो ?, हमने पूछा । तपाक से बोले मार्केटिंग करता हू, गोल्फ़ क्ल्ब की।

बोले आओ कभी, गोल्फ़ बडा अच्छा खेल है । ट्राई करो, हमारे गेस्ट बन कर आऒ। हमने कहा, पर यार हमे तो गोल्फ़ बडा उबाउ खेल लगता है। पतली डंडी से छोटी सी बोल को मारो और फ़िर चलो। अपनी क्रिकेट अच्छी। एक बार जम गये तो जब तक आउट ना हो तब तक बोल को झूडते रहो। खुद मझा लो और देख्नने वाले को भी मझा कराओ।

बोले कैसे पत्रकार हो। गोल्फ़ बडा ही अच्छा खेल है। प्रदूषण मुक्त वातावरण मे खेलते है आप। वैसे भले ही आपको चलना अच्छा नहि लगता है, पर हरे भरे वातवरण मे बोल के पीछे तो आप उत्साह से जायेंगे। हो गई ना आपकी वाकिंग ।सबसे अच्छा तो यह है कि आपका कम्पीटीशन आपसे खुद से ही है । अपना गोल ऊंचा रखिये और अपना ध्यान केंद्रित कर खेलिये आपकी एकाग्रता बढेगी। क्रिकेट खेल्ने के लिये तो कई खिलाडी चाहियें यहा तो बस आप ही आप है।

हमने कहा कि यार टाईम किसके पास है लम्बे मैदान मे इधर उधर होने का। क्या बात करते हैं आप, शिब्बू भाई बोले। हाई सोसाईटी मे काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है गोल्फ़। पिछले छह महिनो मे ही १५० मेम्बर बन गये है। इतने बडे शहर अहमदाबाद और गांधीनगर मे से १५० मेम्बर भी कोई संख्या है क्या? हमने कहा। उनका कहना था कि यह काफ़ी बडी संख्या है । इसकी फ़ीस ही रू १.५० लाख है, २५ साल की । साथ ही केम्बे रेसोर्ट और स्पा मे कई सेवाएं । १०० से ऊपर कमरे है रिसोर्ट मे वो बोले ।

बोले मेम्बर बनने से ही आपका स्टेटस बढ जायेगा। देश विदेश मे लोग इसका उपयोग नेट्वर्किंग के लिये करते है। मतलब- सही मेलजोल बढाने के लिये। मालूम नही मेम्बर के स्टेटस कैसे बढते है, केम्बे रेसोर्ट और स्पा ने इस गोल्फ़ क्लब से गुजरात मे उसका स्टेटस जरूर बना लिया है । अपने शिब्बू भाई को ही लो। कहां तो सरकारी दफ़्तर मे स्टेनोग्राफ़रगिरी करते थे, और कहा अब गोल्फ़ मैनेजरी। बोले कि पहले तीन महिने तो लोगो से मिल्ने और उन्हे समझाने मे ही गये । बाद मे ही ये १५० मेम्बर बने। लगता है की गोल्फ़ समझाते समझाते उनकी गोल्फ़ खिलाडी सी लक्ष्य दक्षता बन गई है !!!

पत्रकार होने के नाते अपने पास तो कभी कभार शिब्बू भाई के गेस्ट बन अपना स्टेटस बढाने का मौका तो है ही । ही ही....

Tuesday, July 17, 2007

गुजरात मे गाईड पहले, किताब बाद मे

अपना गुजारात काफ़ी प्रगतिशील राज्य है। खैर यह किसी को बताने की जरूरत नही है । हर क्षेत्र मे प्रगतिशील। आज कई क्षेत्रो मे अन्य राज्य गुजरात के नक्शे कदम पर चलते है। जगह जगह लोग पाठ्य पुस्तक रामायण से उपर नही आते, अपने यहा तो पुस्तक आये या नही आये गाईड तो पुस्तक छपने से पहले ही आ जाती है।। अरे भैये हिन्दी मे जिसे सुनहरी कुंजी कहते हैं।

दस की किताब तो पचास की कुंजी। और लोग खरीदते है।अरे भैये दुनिया का खेल तो कुंजी का खेल ही तो है । अब सीधी बात है। जब जवाब है तो सवाल तो होगा ही। सभी को मालूम है कि परिक्षा मे नंबर तो जवाब के मिलते है। आप अगर प्रश्न लिखे बिना उत्तर पुस्तिका मे लिखे, जवाब ५, जवाब ३... कोइ कम नंबर देगा क्या?

अब एसे मे यदि नये पाठ्यक्रम की पुस्तके स्कूल खुल्ने के बाद भी बजार मे ना आये तो क्या समस्या ? गाईड जिंदाबाद । मास्तर जी जो पढायेंगे वो आप घर से ही सवाल जवाब के रूप मे गाईड मे पढ कर जाईये और खुश रहिये। आप हीरो तो बन नही सकते क्योकि आपके सभी साथी यही फ़ार्मुला अपना क्लास मे मेघावी छात्र बने हुए है!!

इस साल कक्षा ५ और ६ की नई पुस्तके छ्पी है। एक महिना हो गया, अभी थोडी थोडी बजार मे आ रही है। मा बाप ने बच्चो को गाईडे दिलवा दी हैं। रोज पूछ्ताछ करते हैं कि किताबे आयी है क्या ? जवाब मिलता है, जल्द ही आ जायेंगी। अब जब पुस्तके आयी हैं तब उनके भाव आसमान पर हैं । ५वी की अंग्रेजी की किताब का दाम रु ७।५० से बढ कर रु २८ हो गया है। ६ठी की अंग्रेजी की किताब का दाम रु ९ से बढ कर रु १५ हो गया है। इस तरह सभी के दाम बढा दिये है। आज कांग्रेस ने इस मुद्दे पर आंदोलन की धमकी दे डाली । शक्तिसिंह, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता बोले कि गरीबों का क्या मोदीजी के राज मे?

ये कांग्रेसी गरीबों को गरीब ही बने रहना देने चाहते है। अपने मोदीजी ने देर से पुस्तके छपवा सभी को गाईड का उपयोग करते कर दिया। अब ये बच्चे महंगी किताबे खरीदेंगे। देखा गरीबों की भी खरीद शक्ति बढवा दी अपने मोदीजी और शिक्षा मंत्री आनन्दीबेन ने। कांग्रेसी मोदी राज मे कुछ अच्छा देख ही नही सकते।

Monday, July 16, 2007

एक गुजराती वेबसाइट की क्लिक अपील


क्या आपने कभी किसी को विज्ञापन पढने की अपील करते हुए सुना है? इस गूगल जमाने में क्या नही हो सकता। एक गुजराती अखबार अकिला की वेबसाइट पर आज एक अनोखी अपील देखने को मिली। वेबसाइट पर अखबार के निमिष गणात्रा ने लोगो को कहा है कि पिछ्ले १० वर्षो से यह अखबार लोगो को वेबसाइट के माध्यम से मुफ़्त समाचार उपलब्ध करा रहा है।

गणात्रा का कहना है कि वेबसाइट चलाने का खर्च बढता जा रहा है। वेबसाइट देखने वालो को विज्ञापन को क्लिक कर उन्हे यह खर्चा उठाने में सहयोग देना चाहिये। अकिला दुपहर का अखबार है और राजकोट में काफ़ी लोकप्रिय है। सौराष्ट्र क्षेत्र जहा लोग दुपहर को आराम करने की संस्कृति वाले है वहा इस अखबार का नारा है, "सुबह चाय, दुपहर को अकिला"। उल्लेखनीय है कि इस अखबार ने कुछ समय पहले ही गूगल एड्सेंस के विज्ञापन छापने शुरु किये है। साफ़ है कि यह अपील गूगल एड के लिये ही है।

आपने कोइ एसा प्रकाशन देखा है जो आप को विज्ञापन पढने के लिये प्रेरित करे? यह है उसकी अपील की तस्वीरें,



अहमदाबाद की रथयात्रा के साथ साथ

चलो अहमदाबाद की रथयात्रा शांतिपूर्ण पूरी हो गई। पुलिस से ले पत्रकार तक सभी ने रथयात्रा के शाहपुर से गुजरने के बाद चैन की सांस ली। पिछले कुछ वर्षो से यह यात्रा उजाले में ही संवेदनशील क्षेत्रो में से गुजर जाती है। अकेले शाहपुर क्षेत्र में ही एमर्जेसी बिजली व्यवस्था के लिये बडे पैमाने पर इंतजाम किये जाते है।

इस बार और वर्षो की अपेक्षा भीड कम थी। रथयात्रा के समय सामान्यत: बरसात होती है जिसे अमी छांटणा यानि की अमृत बरसना कहते है। पर इस बार अमृत नही बरसा। रथयात्रा के कुछ दिन पहले से गिरफ़्तारियां शुरु हो जाती है। इस बार तो जगन्नाथ मंदिर में से ४० जेबकतरें पकडे गये। इसमे से १० तो महिलाए थी!

यात्रा की एक झलकी,




Sunday, July 15, 2007

प्रतिभाजी हमारे गुजरात की

प्रतिभाजी आज दोपहर को अहमदाबाद के हवाई दौरे पर आई । पिछले हफ़्ते नही आ पाई थी। अब वो जमाने लद गये जब राष्ट्रपति घर बैठे चुने जाते थे। अब तो उन्हे भी प्रचार करना पडता है। पिछले हफ़्ते अपने आड्वाणीजी और सुष्माजी शेखावतजी के लिये आई थी। शेखावतजी ने तो एक कांग्रेसी विधायक के फ़ोन कर अपना प्रचार भी किया था।

खैर, कांग्रेसियों की बैठक मे दो निर्दलीय विधायकों ने घोषणा कर दी कि उनकी अंतरआत्मा तो बस प्रतिभा प्रतिभा कह रही है। अर्थात ये बंधु अब प्रतिभाजी को वोट देंगे। देखा अंतरात्मा का खेल। उधर अपने कमल ब्रांड भाजपाई बागी विधायकों और सांसदों की अंतरआत्मा से काफ़ी घबराई हुई है।

प्रतिभाजी लगभग दो घंटे लेट आई। पर उनका शाब्दिक स्वागत तो जरूरी था । दाढी वाले विधान सभा मे प्रतिपक्ष के नेता अर्जुन मोढ्वाडिया बोले कि देखो कांग्रेस को देखो। पहली महिला प्रधानमंत्री दी देश को , कांग्रेस अध्यक्षा दी और अब देश को पहली महिला राष्ट्रपति देने जा रही है। महिलाओं के लिये ३३ प्रतिशत की बात तो सब करते हैं, कांग्रेस ने तो ६६ प्रतिशत आरक्षण दे दिया महिलाऒ को। और उन्होने समझाया कि सोनिया गांधी, मनमोहन जी और प्रतिभाजी। हो गये ना ६६ प्रतिशत। वाह अर्जुन जी मान गये आपके कांग्रेस लक्षी बाण को।

खैर फ़िर बारी थी अपने प्रदेश अध्यक्ष भरत सोलंकी की। वो पीछे रहने वालॊ मे थोडे ही है। उनकी फ़ाईटिंग स्पिरिट तो लोगो की चर्चा का विषय है। बोले प्रतिभा जी का जन्म हुआ था बृहद बम्बई मे । उस समय गुजरात बृहद बम्बई का भाग था। इसलिये प्रतिभा जी अपने गुजरात की।

देखी अपने कांग्रेसी नेताओं की क्रियेटीविटी। ऎडवर्ड डि बोनो और टोनी बुज़ान जैसे अंतर्राष्ट्रीय क्रियेटीविटी गुरुओं के लियी भी एक सबक है इनकी भज नेतम शैली।

अहमदाबाद में रथयात्रा की सुरक्षा तैयारीयां

अहमदाबाद में जगन्नाथजी की १३० वी रथयात्रा की तैयारी पुरे जोर शोर से शुरु हो रही है। सोमवार को अहमदाबाद में होने वाली इस यात्रा की सुरक्षा के लिये पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात किये गये है। इन सभी ने शनिवार को रिहर्सल किया।

रिहर्सल की कुछ बोलती तस्वीरें,


पुराने शहर के आस्टोडिया से निकलता पुलिस कारवां


आस्टोडिया में अश्वदल


दरियापुर में गश्त लगाती RAF

Friday, July 13, 2007

डेड सी की नमकीन कीचड से सुंदरता निखारिये

सेंधा नमक पर लिखे लेख की प्रतिक्रियाओं से उठे सवालों का उत्तर खोजते-खोजते हमारे पास काफ़ी जानकारी इकठ्ठी हो गयी है। सोचा अपने साथी ब्लोगरियों के साथ बांट ले।

समुद्री नमक, पहाडी नमक, जमीनी नमक के बारे में तो बताया। उसके साथ काला नमक भी चर्चाया। पर समुद्री नमक के ही कई प्रकार हैं।

मनुष्य के खाने वाला नमक और औद्योगिक उपयोग वाला। मनुष्य के खाने वाले के भी कई प्रकार है। सादा नमक तो आजकल सरकार के कारण लुप्‍तप्राय: ही हो गया हैं। अब जमाना है आयोडीन वाले नमक का। अगर आपको रक्तचाप की समस्‍या है तो है लो सोडियम सोल्‍ट। यदि आप खून की कमी के शिकार है तो आपके लिये हैं आयर्न फ़ोर्टीफ़ाईड सोल्‍ट।

अंग्रेजी दवाओं में भी नमक का उपयोग होता है। पर उसके प्रकार अलग है। दवाओं का मापदंड फ़ार्मोकोपिया द्वारा निश्‍चत होता है। भारतीय और ब्रिटिश फ़ार्मोकोपिया के नमक के मापदंड अलग है।

अपने नमक विशेषज्ञ जामनगर के एन के भारद्वाज का कहना है कि नमक के १३२ उपयोग है। त्‍वचा के सौंदर्य के लिये स्‍पा में नमक का उपयोग होता है। डेड सी जहां के पानी में नमक की मात्रा बहुत अधिक है, वहां समुद्र तल की मिट्टी का व्‍यापार इस सौंदर्यवर्धक गुण के कारण अरबों खरबों रुपयों का है।

गूगल सर्च में यदि हम डेड सी मड लिखे तो २०,६०,००० प्रविष्‍ठियां हैं। प्रतिवर्ष डेड सी क्षेत्र में लाखों लोग इसी लाभ के लिये आते हैं। डेड सी के पानी और कीचड के फ़ायदों में कुछ ये हैं।

यह रक्‍त प्रवाह और त्‍वचा को सुधारती है। इस मिट्टी के कण त्‍वचा की अशुद्वियों और विषाक्‍त पदार्थों को दूर करते हैं। सोराईटिस, एक्‍जाईमा और झुर्रियों की तकलीफ़ में राहत।

त्‍वचा को नैसर्गिक रुप से नमी देती है। मृत त्‍वचा को बहुत ही नरमाई से हटा युवा और स्‍वस्‍थ त्‍वचा को उभारता है।

Thursday, July 12, 2007

गुजरात में न्‍यायिक जांच का गोरख धंधा

मालूम नहीं कि चाणक्‍य को राजनीति का यह फ़ंडा मालूम था या नहीं। आजकल के चाणक्‍यों के लिये तो यह एक बडा ही प्रभावशाली शस्‍त्र है। कुछ भी हो शुरु हो जाते हैं कि न्‍यायिक जांच होनी चाहिए। हाईकोर्ट के जज द्वारा होनी चाहिए।

हमारे मोदीजी को मालूम है कि कांग्रेस उन पर येन केन प्रकारेण कोई जांच ठोक देगी। तो वो खुद ही जांच का आदेश कर देते हैं। गोधराकांड के बाद उन्‍हें जब लगा कि दिल्‍ली सरकार कुछ करेगी, या कोई अदालत कोई आदेश देगी तो उन्‍होंने खुद ही जांच बिठवा दी। उनका नानावटी शाह कमीशन अभी भी जांच कर रहा है।

पर अपने रेलगाडी वाले लालूप्रसाद यादव भी कम थोडे ही हैं। उन जैसा क्रिएटिव ब्रेन तो खालिश भैंस के दूध पीने वालों का ही होता है। उन्‍होंने रेलमंत्रालय की जांच रेल साबरमती एक्‍सप्रेस की पटरी पर चला दी। उनके जस्‍टिस बनर्जी ने तो फ़ैसला भी दे डाला। लालूजी के आदेशानुसार मोदीजी की खाट भी खडी कर डाली।

अब पिछले साल की सूरत की बाढ को लो।बडा हल्ला गुल्ला हुआ था । घर की समस्‍याओं के लिये हाईकोर्ट के जज की नई नई नौकरी को छोड देने वाली सुज्ञा भट्ट को मोदीजी ने न्‍यायिक जांच सौंप दी। कहा कि निवृत हाईकोर्ट जज जांच करेंगी। दिसम्‍बर तक में दूध का दूध पानी का पानी कर देंगी।

गुजरात के वकील (भाजपाईयों के सिवाय) आज तक यह नहीं समझ पाएं कि सुज्ञाजी निवृत हाईकोर्ट जज कैसे हुई। भई जब जज के पद का प्रोबेशन ही पूरा नहीं किया तब वो जज कैसे बनी। खैर हमारे मोदीजी के कायदा आजम अशोक भट्ट के लिये तो वो हाईकोर्ट वाली जज ही थी।

सुज्ञाजी क्‍या कर रही हैं किसी को नहीं मालूम। अपने कांग्रेसियों ने एक सिटीजन जांच करवाई थी। गुजरात हाईकोर्ट के निवृत जज आर ए महेता द्वारा। उन्‍होंने दो दिन पहले २६० पन्‍नों की रिपोर्ट भी दे डाली। तब लोगों को मालूम पडा कि ऎसी कोई जांच हुई है।
सुज्ञाजी की घोषणा हुई, पर वो गायब हो गई। महेता साहब के बारे में लोगों को तब मालूम पडा जब उन्‍होंने उनकी जांच रिपोर्ट दी।

मोदीजी के प्रवक्‍ता चीख-चीख कर कह रहे हैं कि ये बेईमानी है। कहना है तो सरकारी जांच में कहो। ये प्राईवेट जांच का गोरख धंधा गलत है। कांग्रेस के हसमुख पटेल का कहना है कि हमने सरकार को उसका पक्ष रखने को कहा था अब हम सुज्ञाजी को रिपोर्ट भिजवा देंगे। उनका काम आसान हो जायेगा !

शेखावतजी का गुजरात में टेलीफ़ोन चुनाव प्रचार

आजकल राष्‍ट्रपति पद के लिये अपने भैरोसिंह शेखावतजी का प्रचार गुजरात में जोर शोर से चल रहा है। छोटे छोटे बच्‍चों को भी मालूम पड गया है कि शेखावतजी राष्‍ट्रपति पद का चुनाव लड रहे हैं।
वो किस दल से हैं वो किसी को नहीं मालूम। हां वो उपराष्‍ट्रपति पद पर तो भगवा कमल के रुप में ही खिले थे। रविवार को अपने आडवाणीजी और सुष्‍मा दीदी उनका प्रचार करने आए थे। उनके भाजपा के विधायक ही अब अन्‍तर आत्‍मा की आवाज पर वोट डालने की बात कर रहे हैं। भाजपाई इस अन्‍तरआत्‍मा की आवाज को क्रोस वोटिंग समझ रहे हैं।
खैर अपने शेखावतजी कोई चान्‍स नहीं लेना चाहते। आडवाणी वगैरह का क्‍या भरोसा? चुनाव में खडा करवा दिया और बाद में कहा कि ये तो निर्दलीय। बेचारों ने पूरी जिन्‍दगी भगवा ओढा और वो भी पार्टी पोलिटिक्‍स में छीन लिया अपनों ने ही।
तो उन्‍होंने खुद का प्रचार खुद करना शुरु किया है। कांग्रेस के कड़ी के विधायक बलदेवजी ठाकोर का कहना है कि शेखावतजी ने उन्‍हें खुद फ़ोन कर कहा कि ठाकोर उन्‍हें मत दें।
ठाकोरजी का कहना है कि शेखावतजी को उन्‍होंने बता दिया कि वे तो प्रतिभाजी को मत देंगे। आखिर पार्टी के वफ़ादार जो ठहरे। उधर से, ठाकोर का कहना है, शेखावत बोले प्रतिभा तो बेकार है। मैं तुम्‍हारा काम करुंगा। सही बात है, भारत में हर सरकारी काम राष्‍ट्रपति के नाम पर ही तो होता है। ठाकोर ने मोबाईल में शेखावत का फ़ोन नं ०११२३०२२३२१ स्‍टोर भी कर लिया है।
अपने दाढी वाले विपक्ष के नेता अर्जुनभाई ने ठाकोर-शेखावत संवाद मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि शेखावतजी तो यह बहुत गलत कर रहे हैं। पहले कुर्सी छोडे फ़िर कुर्सी के लिये प्रचार करें।

Wednesday, July 11, 2007

गुजरात विद्यापीठ को गांधी मिल गया

महात्‍मा गांधी द्वारा स्‍थापित गुजरात विद्यापीठ को आखिरकार उसका कुलपति बनने के लिए एक गांधीवादी मिल ही गया। ये हैं गांधीजी के सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई।
एक बात साफ़ है कि इस किस्‍से में बंगाल के गर्वनर गोपालकृष्‍ण गांधी जैसा कोई चक्‍कर नहीं पडेगा। गोपालकृष्‍ण गांधीजी के पौत्र हैं। उन्‍होंने कुलपति बनना स्‍वीकार कर लिया था, पर उसके बाद उन्‍हें मालूम पडा था कि वो तो गुजरात विद्यापीठ के कुलपति बनने के लायक गांधीवादी नहीं हैं।

देसाई तो गांधीकथा कहते हैं। शहर शहर जाते हैं और कथाकारों की तरह गांधी कथा कहते हैं। उन्‍होंने गांधी को आम आदमी तक लोककथा शैली से पहुंचाने का बीडा उठाया है। वो काफ़ी सफ़ल हो रहे हैं। उनकी कथाएं बुध्धिजीवियों और अन्‍य को काफ़ी आकर्षित कर रही हैं। वे २००२ के दंगों के बाद से यह गांधी कथा कर रहे हैं।

१९२४ में जन्‍में नारायण देसाई गांधीआश्रम और वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी और उनके साथियों के साथ ही बडे हुए हैं। दक्षिण गुजरात के वेडछी में अपना कार्यक्षेत्र शुरु करने वाले नारायण देसाई ने विनोबा भावे के साथ भी काफ़ी काम किया। उन्‍हें उनके पिता महादेव देसाई और महात्‍मा गांधी की जीवनी लिखने के लिये साहित्‍य अकादमी का अवार्ड भी मिला है।
विध्यापीठ मे हर रोज सभी को प्रार्थना मे भाग लेना और चर्खा कातना अनिवार्य है। इसके बावजूद यह एक हकीकत है कि गांधी के मूल्य इन छात्रो मे नही उतर रहे हैं । आशा है कि नारायण देसाई की रामकथा विध्यापीठ के छात्रों को गांधी के मार्ग पर चलायेगी।

अब मोदी और गुजरात जिन्‍ना विवाद में

लालकृष्‍ण आडवाणी के बाद उनके शिष्‍य गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जिन्‍ना विवाद में फ़ंस रहे हैं। इसके केन्‍द्र में है राज्‍य सरकार के पाक्षिक गुजरात में जिन्‍ना की प्रशंसा करता हुआ लेख- जिन्‍ना का खास दोस्‍त हिन्दू था।

यह लेख जून १६ के अंक में छपा था। और यदि सरकार के दावे पर विश्‍वास करें तो गुजरात का सरकुलेशन दो लाख से अधिक है। यह इस पाक्षिक में छपता है। यह कहता है कि गुजरात यानि कि सरकार का नहीं, साडे पांच करोड गुजरातियों का "गुजरात" है। पर यह बात अलग है कि यह विवाद इस समाचार के एक अंग्रेजी अखबार मे ६ जुलाई के छपने के बाद हुआ । यह अखबार दो लाख नही बिकता।

इस लेख में कहा गया है कि हिंदू नेताओं ने जिन्‍ना से संबंध काट दिए थे, इसलिए उससे किसी भी प्रकार के संवाद के रास्‍ते बंद हो गये। जिन्‍ना इससे बहुत ही व्‍यथित और कटु हो गये।

लेखक गुणवंत शाह ने जिन्‍ना के एक करीबी "दोस्‍त" कानजी द्वारकादास का उल्‍लेख करते हुए कहा है कि जिन्‍ना के आत्‍म सम्‍मान को ठेस पहुंची थी और इसलिए वे कटु हो गये और उनके आसपास अविश्‍वास का वातावरण हो गया।

विहिप नेता प्रवीण तोगडिया ने तो जिस दिन इस लेख की रिपोर्ट एक अंग्रेजी अखबार में छपी उसी दिन उसकी भर्तत्‍सना की थी। मौका नहीं चूकते हुए विपक्ष के नेता ने भी इस लेख के लिए मोदी पर बंदूके तानी है।

पाक्षिक के एक्‍जीक्‍युटिव एडीटर सुघीर रावल का इस विषय में बहुत औपचारिक जवाब है कि ये लेखक के अपने विचार हैं। क्‍या यह इतना आसान है? क्‍या किसी कांग्रेसी नेता या आम आदमी द्वारा मोदी के विरुद्ध लिखे गए लेख पर भी क्‍या उनका यही रवैया होगा?

देखे इस चुनावी वर्ष मे किसे क्या फ़ायदा होता है।

Tuesday, July 10, 2007

पूजा के प्रतिरोध का फ़िल्‍मी प्रतिरोध

अभी जहां पूजा के प्रतिरोध का चर्चास्‍पद विवाद पराकाष्‍ठा पर है, राजकोट की एक और महिला विरोध में पूजा के रास्‍ते पर दौडी। हम नक्‍शे कदम तो नहीं कहेंगे क्‍योंकि ये बहनजी पूरे कपडे पहने हुए थी।
इनका नाम है काजल जोशी। सुना है फ़िल्‍मों में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही है।
जैसा कि फ़िल्‍म वाली बहनजियों के किस्‍से में होता है, इनके विचार भी इनकी अम्‍मा ने मीडिया को बताए।उनका कहना है कि काजल काफ़ी संवेदनशील है। अम्‍मा का कहना है कि पूजा की अर्धनग्‍न दौड से हुए भारतीय संस्‍कृति के नुकसान से काजल इतनी दुखी हुई कि वह उसका प्रतिरोध करने के लिए मशाल ले उसी रास्‍ते पर दौडी। साफ़ है कि काजल को सुर्खिया तो मिली पर उतनी नहीं जितनी पूजा को मिली थी।

उधर पूजा के ससुराल वाले भी मीडिया कांफ़्रेस कर रहे है कि पूजा बदचलन है। चौहान के साथ शादी के पूर्व उसकी दो शादी हुई थी। उसका तथ्‍य उसने चौहान परिवार से छुपाया था।

पूजा के ससुराल वालों के विरुध्ध पुलिस ने सुबह कार्रवाई की थी, इसके बावजूद वह शाम को दौडी थी। इस मुद्दे पर काफ़ी विवाद है। यह तथ्‍य एक हकीकत है। यह भी हकीकत है कि उसे नंगी दौड लगाने का आईडिया देने वाले मीडिया के लोग ही थे। सुना है कि मुख्यमंत्री ने राजकोट के कमिश्नर नित्यानंद को इस मुद्दे की जांच करने को कहा है।

पर मुद्दा यह है कि इस मूर्खता के लिये उस पर किसी प्रकार की कोई जोर जबरदस्‍ती नहीं थी। और अगर उसने किसी लालच के लिये ऎसा किया था तब वह इसके लिये और अधिक जवाबदार थी।
अपने २६ वर्षों के पत्रकारिता के कैरियर में मैंने यह देखा है कि लोग सुर्खी में आने की कला में उत्तरोतर दक्ष होते जा रहे हैं। वे मीडिया की समाचार की व्‍याख्‍या को उनकी जरुरत के अनुसार बडे प्रेम से भुना लेते हैं। इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण है काजल जोशी।
राजकोट में वह उसी रास्‍ते पर दौडी जिस पर पूजा दौडी थी। क्‍यों? एक विवाद में कूदी। क्‍यों? साफ़ है कि फ़िल्‍मी क्षेत्र में संघर्ष करने वाली युवती को इस विवाद में लोगों में नाम कमाने का रास्‍ता, सुलभ और प्रभावशाली तरीका दिखा।
अपने पहले चिट्‍ठे में मैंने यह बतलाय था कि किस तरह एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने चैनल को गाली बक खुद वाह वाह बटोरी थी। इससे भी गंभीर बात यह थी कि इस कांड का "ब्रेन" उन्‍हीं के अखबार का पत्रकार था। सभामंडप में कह देते कि दुख की बात है कि उनका अपना पत्रकार ही पूजा चौहान दौड का भेजेबाज था।
मित्रों, मीडिया को जिम्‍मेदाराना ढंग से काम करना चाहिए। इसके बावजूद ऎसी घटनाएं होंगी। क्‍योंकि छ्पात रोग का कोई ईलाज नहीं है !!!

मोदी को हराने के लिये कांग्रेस अंकल साम की शरण में

गुजरात में इस वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनावों पर पूरे हिन्‍दुस्‍तान की नहीं दुनिया की नजर है। चुनाव का केन्‍द्र अपने मोदीजी ही हैं।

पिछ्ली बार तो उनकी गाडी गोधरा कांड की आग से पूरी तेज गति से चल पडी थी। इस बार उनका नारा विकास का नारा है ( अभी तक तो है)। चुनाव के आखिरी दिनों में यह ऊंट (कहावत वाला) कहां बैठता है यह तो शायद ऊंट को भी नहीं मालूम।

खैर अपने कांग्रेसी पूरा जोर लगा रहे हैं, मोदीजी को हराने के लिये। शायद ही कभी चुनाव के एक वर्ष पूर्व चुनावी बिगुल और युध्ध के ढोल ताशे बजे होंगे। आखिरकार मोदीजी को हराना मतलब हिन्‍दू ताकत को खत्‍म करना। भाजपा के एक मात्र बचे हुए हिन्दू चेहरे को मिटाना।

अपने कांग्रेस के प्रतिपक्ष के नेता, मोदीजी की तर्ज की दाढी वाले अर्जुन मोढवाडिया, युवा शक्‍ति का नेता बने रहने में मशगूल प्रदेशाध्य्क्ष भरत सोलंकी एडी चोटी का जोर ही नहीं दिल्‍ली से अमरीका तक की दौड भी लगा रहे हैं। किसी तरह से भी मोदी की छुठ्ठी कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया लें। वो कभी साईकल पर पोरबंदर तक गांधीगिरी करने जाते है तो कभी आदिवासियों के साथ मोदी सरकार पर तीर कमान खींचते हैं।

भैय्‍ये बार बार अपनी सोनियाजी को बुला लाते हैं। अगर वो नहीं आती तो उनके राजनीतिक सलाहकार अपने गुजरात के अहमद पटेल को बुला श्रोताओं को उनके कुछ शेर सुनवा देते हैं।

अब तो वो अमरीका से साम अंकल की मदद ले रहे हैं। अरे साम अंकल यानी कि अपने सत्‍यनारायण गंगाराम पित्रोडा । जब तक हिन्‍दुस्‍तान में थे तब तक वे सत्‍यनारायण गंगाराम पित्रोडा ही थे। अमरीका जाते ही वे साम पित्रोडा हो गये। कहा है ना कि रोम में रोमन की तरह रहे। अमरीका में अपने सत्‍यनारायण भैय्‍या ने तो नाम भी अमरीकी रख लिया और साम हो गये। वे अपने भरत और अर्जुन को ऎसा गुजरात बनाने का गुर बतायेंगे कि गुजरात के लोग गुड पर मधुमख्‍खी की तरह भनभनाते हुए बैलेट बोक्‍स में केवल पंजे से पंजा मिला जीत की तालियां बजायेंगे।

मालूम है वो क्‍या करेंगे। वो गुजरात कांग्रेस के लिये मैनीफ़ेस्‍टो यानि कि चुनावी घोषणापत्र बनायेंगे।

मित्रों साम भैय्‍या को कम मत समझना। वे भारत के नोलिज कमीशन के अध्‍यक्ष हैं। शंकरसिंह वाघेला ने गुजरात के ज्ञानियों का जो दरबार रचा था उसके एक मंत्री थे। उसके बाद कई सरकार आई पर वह दरबार ही नहीं लगा। पर अपने सत्‍तू भैय्‍या उर्फ़ साम काका (अंकल को गुजराती में काका कहते हैं, पंजाबी वाला काका नही) गुजरात के चुनावी क्षितिज पर उभरेंगे। वेलकम अंकल साम।

Monday, July 9, 2007

चंद्रशेखर और गुजरात का फ़ाफ़डा

चंद्रशेखरजी का गुजरात से बहुत गहरा नाता था। गुजरात की राजनीति मे बहुत से एसे लोग मिलेंगे जो चंद्रशेखरजी के बारे मे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर घंटों बातें कर सकते है ।
चन्द्रशेखरजी खाने खिलाने के शौकीन थे। गुजरात का फ़ाफ़डा उनका सबसे प्रिय नाश्ता था। यहां आ सबसे पहले फ़ोन करते उनके चहेतों की चौकडी को - कांग्रेस के हाल के प्रवक्ता जयंतीलाल परमार , पूर्व पार्षद रोहित पटेल और दिनेश वक्ता और मजीद शेख। और ये सब सर्किट हाउस मे हाजिर हो जाते उनके प्रिय फ़ाफ़डा और चटनी के साथ।
अपने चिठ्ठाकार मित्रों को बता दे कि फ़ाफ़डा इतना लोकप्रिय है गुजरात मे कि रोज लाखों रुपयो का फ़ाफ़डा खाया जाता है। दशहरा के दिन तो हर घर मे फ़ाफ़डा खाया जाता है। जगह जगह फ़ाफ़डा और जलेबी बिकता है । करोडों का फ़ाफ़डा जलेबी खाया जाता है। फ़ाफ़डा बेसन का बनता है और तेल मे लम्बी लम्बी पट्टिया तली जाती हैं।
जयन्तिलाल परमार और रोहित पटेल के लिये चंद्रशेखर की मृत्यु औरो की अपेक्षा अधिक दुखदायी घटना है। चंद्रशेखर की मृत्यु से एक दिन पहले ही, शनिवार को, दिनेश वक्ता की मृत्यु हुई थी । मजीद शेख की मृत्यु कुछ वर्ष पूर्व एक सडक हादसे मे हुई थी।
जयन्तिलाल परमार एक रसप्रद किस्सा बताते हैं। एमरजेंसी के दौरान चंद्रशेखर तत्कालीन गृहमंत्री अशोक मेहता के आदेश पर गिरफ़तार कर लिया गया। उनके दोनों पुत्र छोटे थे। अशोक मेहता ने उन दोनों बच्चों को अपने घर रख लिया। और बाद में राजकपूर की हिंदी फ़िल्म की तरह अशोक मेहता की एक पुत्री की चंद्रशेखर के पुत्र पंकज के साथ शादी हो गई।
हमारे जयन्तिलाल ने कहा कि वह जमाना राजनीतिक सहिष्णुता का था।

गुजरात भाजपा में आ बैल मुझे मार

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

पिछले कुछ महिनों से गुजरात भाजपा यादवास्‍थली बन गई है। कौन क्‍या है यह तो नहीं मालूम पर बागी भाजपाई लालकृष्‍ण आडवाणी को खुल कर धृतराष्‍ट्र पुकार रहे हैं। नरेन्‍द्रमोदी के मोह में अंधे धृतराष्‍ट्र। पर हम ईमानदारी से कहें कि हमारे मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदीजी के लिये अभी कोई प्रचार पात्र नहीं चुना गया है।

बागी अपने को बहुसंख्‍यक बतलाते हैं। पर, अगर प्रदेशाध्‍यक्ष पुरुषोतम रुपाला की बात माने तो वे पौने पांच साल में पांच के साडे पांच नहीं हुए हैं। पर उन्‍होंने उन्‍हें कभी पांडव नहीं कहा। कहें भी कैसे? यदि बागी पांडव बने, तो बाकी सब कौरव। आडवाणीजी तो धृतराष्‍ट्र घोषित ही किये जा चुके हैं। अब दुर्योधन की घोषणा होनी बाकी है।

हर रोज बागियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। पहले अपने मुख्‍यमंत्रीजी को ही गाली बकते थे। प्रचार के भूखे, भाजपा को खत्‍म करने वाले और हिटलर जैसी अभिव्‍यक्‍तियों का उपयोग करते थे। अब तो धीरु गजेरा खुल कर आडवाणी को धृतराष्‍ट्र कह रहे हैं।

पिछ्ले तीन साल में तीन विधायकों को निलम्‍बित और कुछ और को पार्टी से निकाल देने वाले नेता चुपचाप छाती पर वार सह रहे हैं। रुपालाजी का कहना है कि असंतुष्‍ट कांग्रेस और एनसीपी दोनों से सौदेबाजी कर रहे है और वे चाहते हैं कि उन्‍हें भाजपा दल से खदेडे। इससे वो अपना मार्केट बढाना चाहते हैं। उनकी भाषा में बागी पार्टी से निकाले जानेका टाईटल क्लीयरन्स सर्टीफ़िकेट की जुगाड में है।

इधर अपने मोदीजी का गुट भी सुर्रे छोडता रहता है वह भी चाहता है कि ये पांडव चालू रहें। उनका मानना है कि इससे लोग उन्‍हें परख लेंगे। खुद ही थक कर खतम हो जायेंगे।

कुछ दिन पहले बावकूभाई उधाड को नोटिस ठोक दिया था। कल अमरेली में मोदीजी के विश्‍वस्‍त दिलीप संघाणी ने विधायक धीरु गजेरा के भाई पर आरोप लगाया कि उन्‍होंने उन्‍हें फ़ोन पर जान से मार डालने की धमकी दी। इधर बागी कहते है कि मोदी ने केडर बेज्ड पार्टी को प्राइवेट लि. कंपनी बना दिया है।

गुजरात में लोग आजकल शंकरसिंह वाघेला को याद करते है। कोई शोर शराबा नही। ले गये विधायको को काम कला कृति के लिये मशहुर खजुराहो के मंदिर दिखलाने और कर दिया केशुभाई सरकार का काम तमाम। यहा तो महीनो से युध्ध वृंद बज रहे है, नतीजा कुछ भी नही।

दोनों पक्ष लगे हुए कि कैसे अगला उन पर वार करे। बागी इस्‍तीफ़ा दे अपनी राह चुन सकते हैं पर वे डटे हुए है। मोदी गुट उन्‍हें बाहर निकाल आडवाणी को धृतराष्‍ट्र बनने से बचवा सकता है, पर वह भी कह रहा है आ बैल मुझे मार। किसी दिन कोई बैल तो दूसरे को मार ही देगा। सभी को इन्‍तजार है कि कौन किसको मारता है।

Sunday, July 8, 2007

पूजा के प्रतिरोध मे मीडिया की नग्नता

मै पिछले कुछ दिन से सोच रहा था कि पूजा के प्रतिरोध मे मीडिया की नग्नता के बारे मे लिखू । कुछ देर पहले मसिजीवी का चिठ्ठा पढा। सो अब वो लिख रहा हूं जो आपको किसी अखबार मे पढने को नही मिलेगा । इससे पहले यह स्पष्ट कर दू कि मै पूरी तरह से यह मानता हू कि पूजा चौहान हमारे समाज की पुरूष केंद्रित सोच का शिकार है। गुजरात मे सौराष्ट्र ऎसा क्षेत्र है जो पूरे गुजरात मे धार्मिक क्षेत्र के रूप मे जाना जाता है, पर आर्थिक और क्षैक्षिक रूप से अन्य क्षेत्रो से बहुत ही पिछडा हुआ है ।
वास्तव मे यह सारा नग्नता का खेल कुछ पत्रकारों का है जिसमे एक प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है । हाल मे एक राष्ट्रीय परिसंवाद मे इस अखबार के वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह बहुत ही शर्मजनक घटना है और यह सब एक चैनल पत्रकार ने अपनी स्टोरी बनाने के लिये पूजा को उकसा कर किया । उन्होने कहा कि पूजा को दो साल के संघर्ष के बाद न्याय मिल रहा था, पर चैनल पत्रकार की स्टोरी नही बन रही थी। इसलिये उस पत्रकार ने उसे इस नग्न दौड के लिये उकसाया । संघर्ष से थकी पूजा हर तरीका आजमाना चाहती थी और इसलिये उसने नग्न दौड का दांव भी आजमा देखा ।
हमारे इस पत्रकार मित्र ने परिसंवाद मे पत्रकारिता के इस रूप के लिये माफ़ी मांगते हुए कहा कि एसी पत्रकारिता बहुत खराब है। हाल मे काफ़ी तालिया बजी। मंच संचालन मे लगे एक प्रमुख चैनल पत्रकार ने स्पष्ट्ता की कि वो हमारी चैनल नही थी । कुछ देर मे कार्यक्रम समाप्त हो गया ।
इस वरिष्ठ पत्रकार मित्र के पास कुछ चैनल पत्रकार मित्र गये। उसमे से एक ने कहा कि मित्र सुना है कि पूजा को उकसाने वाला पत्रकार आपके अखबार का ही था। अपने इन मित्र ने तुरंत जवाब दिया, तभी तो मै इतना अधिक जानता हूं ! चैनल पत्रकार भी एक दिग्गज चैनल से थे। क्या करते ? श्रोता तो भोजन के लिये जा रहे थे। फ़िर बोले तभी पहले दिनो मे आपका अखबार ही इसे चमका रहा था । वो यह हक़ीक़त किसे बताते कि वाह वाह लूटने के तरीके हजार है, सच जाये भाड मे !!!

Saturday, July 7, 2007

जब चिठ्ठा चोरी हो जाये

श्रीश जीं का चिठ्ठा चोरी वाला चिठ्ठा पढा उस पर टिप्पणिया भी पढी चोरी के सकारात्मक पहलू को जान मेरी सोच काफी विकसित हुई चोरी अच्छी चीज की ही होती है आप को भी मालूम होगा की कई जगह आयकर के छापे पडना , दिवाला निकलना जाति मे अच्छी बात मानी जाती है । आपके किस्से मे तो एक नंबर के बुद्धीधन की चोरी हुई है , वह भी टयुटोरियल क्लास वाले द्वारा । शुध्ध २४ केरेट का माल है आपका ।

खैर, मै आप सभी को एक ऎसी वेबसाईट के बारे मे बताना चाहता हू, जहा से आप यह ध्यान रख सकते हैं कि आप का माल कहां कहां से उठाया गया है । जैसा कि अधिकअतर व्यवसायिक वेबसाईटो मे होता है, यहां भी थोडी सेवा मुफ़्त होती है, बाकी की सेवा प्रीमियम सेवा के नाम से पैसे से होती हैं ।
यह वेबसाईट है

http://copyscape.com/

आप गूगल मे Digital Millennium Copyright Act लिख सर्च मारे तो आपको कापीराईट के विषय मे उसे बचाने के लिये काफ़ी उपयोगी जानकारी मिल सकती है । DMCA की मदद से आप ऎसी वेबसाईट को सर्च ऎंजिन से निकलवा सकते है और अन्य कार्यवाही कर सकते है।

अच्छी खबर भी कोइ खबर है

आजकल मीडिया को गाली ही सुनने को ही मिलती है मीडिया एक ऐसा शब्द है , जव आम भाषा मे ही नही , आम आदमी के जुबान मे भी रम गया है । हमे हमारे बचपन का किस्सा याद आता है रेलवे इन्स्टीट्युट मे हर हफ्ते पिक्चर हुआ करती थी मुफ़्त के पास पर सब देखने आते थे । नाच गाने के दृश्यो पर मुई कैसी है, इसको लाज शर्म नही है ... । पर हर बार भीड़ हमेशा जैसी ।
बस मीडिया की भी यही हालत है । लोग जब देखो तब कोसते ही रहते हैं। इसमे अपने मोदीजी अकेले नही है। फ़िर भी लोग टी वी पर शाम को चिपके रहते है । ऎसे हजार किस्से लिख सकते हैं । पर यहां हम बात कर रहे है आज के एक सेमीनार की । सेमीनार का विषय था ब्रोड़कास्टिंग बिल । ओपन सेश्न मे सवाल जवाब थे । लगभग सभी सवाल मीडिया के बारे मे थे , बिल के बारे मे नहीं ।
किसी ने कहा मीडिया को कुछ अच्छा नही दिखता । एक ने सवाल दागा, गुजरात के बारे मे खराब क्यो लिखा या दिखाया जाता है ? इसके साथ लम्बी टिप्पणी भी कर डाली । सवाल पूछना भी एक विशेषता है । अच्छे अच्छे विद्वान भी सही सवाल नही पूछ सकते । इसीलिये तो कहते हैं कि कोई व्यक्ति उसके सवाल से जाना जाता है, जवाब से नही । खैर , अपने प्रकाश शाह ने बिल्कुल सही टिप्पणी । ये सब अच्छे सुझाव है, हम इन्हे सुझाव के रूप मे हमारे दस्तावेज मे रखेंगे !
प्रसार भारती के पूर्व सी ई ऒ के एस सर्मा का जवाब था कि आप सब जानते हैं कि नो न्यूज इज गुड न्यूज तो गुड न्यूज इज नो न्यूज। सही बात है सर्मा जी । उन्होने उदाहरण दे बताया कि लोग कैसे गुड न्यूज के लिये कहते है की इसमे क्या और बेड न्यूज सुनते ही और जानने को उत्सुक हो जाते है । हमारा तो अनुभव है कि सत्ता मे लोग अपने बारे मे अच्छी और औरों के बारे मे खराब न्यूज सुनना चाहते हैं । इसीलिये गुड न्यूज इज नो न्यूज।

किस्सा सेंधा नमक और काला नमक का

सेंधा नमक पर लिखे गये लेख ने अपने ब्लोगर बंधुओ मे काफ़ी उत्सुकता जगायी थी। जैसा कि हमने लिखा था, वैद्य मुकेश पानेरी ने हम लोगो के लिये सेंधा नमक और काला नमक के गुणधर्म लिख भेजें है। उन्होने काला नमक बनाने की आयुर्वेद की विधि भी लिख भेजी है । हम यह विधि इसलिये लिख रहें हैं क्योकि जामनगर के नमक विशेषज्ञ भारद्वाज जी का कहना है कि काला नमक सेंधा नमक की तरह केवल प्राकृतिक रूप मे ही होता है । हमारा यह लेख था नमक खाओ तो सेंधा नमक खाओ ।

सेंधा नमक

सेंधा नमक को लाहोरी नमक भी कहा जाता है, क्योकि यह पाकिस्तान मे अधिक मात्रा मे मिलता है । यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है । सफ़ेद रंग वाला नमक उत्तम होता है। यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे भी इसका उपयोग किया जा सकता है। यह पित्त नाशक और आंखों के लिये हितकारी है । दस्त, कृमिजन्य रोगो और रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है ।

सेंधा नमक के विशिष्ठ योग

हिंगाष्ठक चूर्ण, लवण भास्कर और शंखवटी इसके कुछ विशिष्ठ योग हैं ।

काला नमक

यह भी ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, वायु शामक है । पेट फ़ूलने की समस्या मे मददरुप है। इसके सेवन से डकार शुध्ध आती है और छोटे बच्चो की कब्ज की समस्या मे इसका उपयोग होता है ।

काला नमक बनाने की विधि

काला नमक बनाने के लिये सेंधा नमक और साजीखार सम प्रमाण मे ले। साजीखार का उपयोग पापड बनाने में होता है और यह पंसारी की दुकान पर आसानी से मिलता है। इस मिश्रण को पानी मे घोलें । अब इसे धीमी आंच पर गर्म करे और पूरा पानी जला दें । अंत मे जो बचेगा वह काला नमक है ।

Friday, July 6, 2007

वड़ोदरा के पणीकर की अहमदाबाद मे धुलाई

वड़ोदरा के अपने शिवाजी पणीकर आज अहमदाबाद आये थे । उन्हें क्या मालूम था कि उनके चेले चंद्रमोहन की करतूत का खामियाजा उन्हे एम एस युनिवर्सिटी छोड्ने के बाद भी भुगतना पडेगा। चंद्रमोहन के विवादास्पद चित्रो के कारण उन्हे युनिवर्सिटी से निलंबित कर दिया गया था।


वो अहमदाबाद में अनह्द द्वारा आयोजित एक प्रदर्शन का उदघाट्न करने आये तब २० लोगो के टोले ने उनकी धुलाई की और उनकी कार के कांच तोड दिये। उन्होने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है । पिटाई करने वाले भाजपा और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता थे। ये है बोलती तस्वीरें,







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