Followers

Thursday, May 1, 2008

साबरमती जेल, मुठभेडिया पुलिस वालों का अखाडा

साबरमती जेल के सुरक्षाकर्मी आजकल काफी परेशान हैं। आए दिन जेल में दंगल हो जाता है। सामान्य कैदी हो तो धुलाई कर बैरक में डाल दे। पर ये सब ठहरे दिग्गज पुलिस वाले।

इन्हें कानून बखूबी मालूम है। गोली मार मुठभेड बताने में माहिर हैं। साफ है कि, इनसे निपटना किसी के बस की बात नहीं। कुछ महिने पहले कुछ पुलिसवालों ने दिग्गज वणजारा और पांडियन को हथकडी पहनाने की कोशिश की थी। बता दी कानून की किताब। कर दी अर्जी अदालत में। सुप्रीम कोर्ट के फैंसले से ले मानवाधिकार सभी कुछ पढा दिया। जीत गये। अदालत ने कह दिया, हथकडी नहीं। आरोप सिध्ध नहीं हुआ। इज्जतदार हैं!
इस हफ्ते सोहराबुद्दीन कांड के ये नायक वणजारा और नरेन्द्र अमीन गुत्थमगुथ्था हो गये। आई पी एस अधिकारी एक दूसरे पर ही टूट पडे क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी!
गुस्सा किस पर उतारते। और कैदी मिलकर उनकी धुलाई कर देते। हां, बाहर होते तो सोहराबुद्दीन जैसे एक दो को उडा गुस्सा ठंडा कर लेते। एकाद तमगा भी वर्दी पर लगवा देते।
कल दो और सब इंस्पेक्टरों में लठठम लठ्ठ हो गई। ये दोनों भी फर्जी मुठभेड के चक्कर में जेल में हैं। गुस्से में एक आई पी एस ने मुर्गे की रान चबाने के अंदाज में बैडमिंटन रैकेट के तार ही फाड डाले। आम किस्से में कैदियों को दूसरी जेल में भेज देते हैं। पर इन्हें कही भी भेजें तेवर तो पुलिसिया ही रहेंगें।

मोदी जी ने मीडिया की पैरवी की !

मोदी जी तो मोदी जी हैं। कब क्या करें, कब क्या बोलें कोई कह नहीं सकता। शायद मोदी जी खुद भी नहीं।
हाल ही में दिल्ली में जब उनके चाहकों ने जब टीवी पत्रकारों की धज्जीयां उडाई थी तब वे इस प्रकार बैठे रहे जैसे उन्हें इससे कोई सम्बन्ध ही नहीं! उनके आयोजकों ने उनका सम्मान कार्यक्रम किया था। पत्र्कारों को न्यौता दे, उन्हे बेआबरु कर कूचे से निकल जाने को भी कहा।
पर उसके दो दिन बाद तो मोदी जी ने उनके पत्रकार प्रेम से अहमदाबाद के पत्रकारों कों अचम्भित ही कर दिया। उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल प्रेस कांफ्रेन्स शुरु हुई ही थी कि मोदी जी ने कहा कि, गुजरात के पत्रकारों की ओर से वे कुछ कहना चाहते हैं।
प्रफुल पटेल को भी आश्चर्य तो जरुर हुआ होगा। पर ठहरे राजनीति के मंझे खिलाडी भृकुटी तो छोडों, चेहेरे पर भी शिकन न आने दी। खैर अपने मोदीजी ने कहा कि, अहमदाबाद- लंदन सीधी उडान के अवसर पर पत्रकारों की इच्छा थी कि उन्हें उद्‍धाटन उडान में ले जाया जाये। पर उस वर्ष चुनाव के कारण यह नहीं हो सका। हालांकि एन डी ए सरकार थी, वे बोले।
प्रफुल जी हमारे पत्रकारों की टोली को आप लंदन घुमा लाओ। पटेलजी ने भी मोदी जी की बम्पर को मुंडी नीचे कर टाल दिया। मजेदार बात तो यह है कि, पिछले चार वर्षों में मोदीजी प्रफुल जी के साथ कई बार मंचस्थ हो चुके हैं।
मोदीजी को पत्रकार वापिस याद आये, वह भी चुनावी वर्ष में ! मोदीजी हैं। कभी भी कुछ भी कर सकते हैं !!!

Tuesday, April 15, 2008

आईआईएम अहमदाबाद का नया अर्थशास्त्र

आईआईएम अहमदाबाद ने उसकी फीस में तीन गुना बढा़ तहलका मचा दिया। अब आपको आईआईएम अहमदाबाद का एमबीए होने के लिये रु. १२ लाख की फीस देनी होगी।
मानवसंसाधन मंत्री अर्जुनसिंह जो आईआईएम के पीछे हाथ धोकर पड़ गये थे, उन्होने शुरुआत में तो थोडी सी नाक भौं चढा़ई। पर, फिर वो भी चुप हो गये और फीस मंजूर हो गई। कईयो का मानना है कि अर्जुनसिंह की समस्या आईआईएम नहीं पर आईआईएम के पूर्व अध्यक्ष बकुल धोलकिया का अंदाजे बयां था। अपने समीर बरुआ ने उन्हे एक नया अर्थशास्त्र पढा दिया।

बरुआ जी ने कहा कि एक लाख वार्षिक आय वालों की सम्पूर्ण मुफ्त पढा़ई। अन्यो को भी थोडी बहुत छूट । बरुआजी के अनुसार रु. छ्ह लाख की वार्षिक आय वालों को छूट छाट मिलेगी। उनका दावा है कि इससे ६५ प्रतिशत को लाभ मिलेगा। यह अर्जुनसिंह की ३३ प्रतिशत की मानसिक सोच से दो गुना निकला !!
बरुआ जी का कहना है कि बढती महंगाई और सरकार द्वारा वेतन वृद्धि के कारण यह बढोतरी की गई। अब अन्य आईआईएम और आईआईटी भी इस शानदार सोच पर विमर्श कर रहे है।
शुक्र है बरुआ जी ने यह नहीं कहा कि मासिक महंगाई के दर पर हर महिने फीस में परिवर्तन होगा। आशा है कि मुद्रास्फिति में कमी पर अपने बरुआजी फ़ीस कम भी करेंगे!!

भाजपा विद्यायक मधु श्रीवास्तव के कारनामे

वडोदरा जिला के चम्बल स्टाईल दाढी मूछ वाले विद्यायक मधु श्रीवास्तव को बेस्ट बेकरी कांड ने मीडिया में पहचान दी। हट्टे कट्टे लम्बे चौडे़ मधु श्रीवास्तव इस कांड के कारण सुर्खियो में आते रहते हैं।
पर होली पर तो उन्होने कमाल कर डाला। उनकी हुड्दंग सुर्खियों में छा गई। जलूस निकला। बेफिक्राना अंदाज से हवा में पिस्तोल से हवा में गोलिया दाग दी। बुरा हो टीवी वालों का, उन्होने मधु श्रीवास्तव की हवाई फायर की कैसेट चला डाली। उन पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया। मधुजी भी इस खेल के शातिर खिलाडी ठहरे। बोले भैय्ये ये तो नकली चाईना मेड बन्दूक थी। चढ़ बैठे पुलिस पर! तुम यह बताओ कि मेरे खिलाफ केस किस आधार पर दर्ज किया आपने।
पुलिस कह रही है बन्दूक असली थी और अपने श्रीवास्तव जी अडें हुए हैं कि नहीं वो नकली थी।राम जाने सच क्या है?
पर श्रीवास्तव जी का सुर्खी योग बरकरार है। मुम्बई एयर पोर्ट पहुंचे, लंदन जाने के लिये। अधिकारियों ने उनके कागजों की पडताल की तो मालूम चला कि अपने श्रीवास्तव जी तो विदेश जा ही नही सकते। कोर्ट ने उन पर यह बंदिश लगा रखी है। उन्हे हवाई जहाज में चढ़ने ही नही दिया, टिकट होने के बावजूद भी। एक और सुर्खी के साथ चमक गये श्रीवास्तव जी मीडिया में।

Thursday, April 10, 2008

मोदी, मिल्ट्री, मीडिया और माकटेल

मिल्ट्री वालों की प्रेस कान्फेंस का अपना ही आकर्षण है। मुफ्त में दारु। गुजरात जैसे राज्य में तो यह विशेष आकर्षण है। दारुबंदी जो है यहां। आप फौजियों की प्रेस कांफ्रेंस में बेफिक्री से मदहोश हो सकते हैं।

पर पिछले कुछ समय से फ़ौजियों की प्रेस कांफ़्रेंस सूखी ही रहती है। दारू तो छोडो बीयर भी नही मिलती है। काकटेल की जगह मॊकटेल परोस देते है, अपने फ़ौजी भाई। बोलो कोई चीयर्स कैसे करे। साफ़ है कई लोग तो आते ही नही हैं । कुछ आते हैं तो फ़ौजियो की शुष्कता को कोसते रहते हैं।

अपने मित्रो के हित में हमने अपनी खोजी पत्रकारिता की सारी तरकीबे लगा दी। हमारे पास फौज में पत्रकारों की दारुबंदी का विश्‍वसनिय जवाब है। आप इसे हमारा 'स्कूप' कहें तो हमें काफी आनन्द होगा!हुआ यूं कि २००४ में वायुसेना के तत्कालिन एयर मार्शल पी. के. मेहरा, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने गये। इस औपचारिक मुलाकात में बातों बातों में मेहरा ने वेट के कारण महंगी हुई शराब की तर्ज पर फौजी की समस्या बयां की।

आपको बता दें कि मेहराजी उस समय दक्षिण पश्चिम एयर कमांड के कमान्डर थे। कई राज्यों के सीमक्षेत्र वाली इस एयर कमान्ड का मुख्यालय गांधीनगर है।अपने मोदीजी को भी शायद इस मुद्दे की आशंका थी। तपाक से बोले, मेहराजी आपके फौजी सस्ती दारु को बाहर ब्लैक में बेचते हैं। आपकों यह तो मालूम होगा कि गुजरात में दारुबंदी है। मेहराजी बोले ऎसी बात है। और एक फौजी कमान्डर से गुजरात के कमान्डर ने वादा किया कि वे देखेगें कि इस प्रकार की घटना न हो। इस समझौते ( हां जी एमओयू ) के तहत फौजियों की शराब सस्ती हो गई।

मेहरा ने मुख्यमंत्री के चैम्बर से बाहर निकल विंग कमान्डर टी के सिंगा को कहा कि देखो किसी सिवीलियन को दारु नहीं। बेचारे सिंगा क्या करते ? आदेश जारी हो गये। सबसे बडी समस्या सिंगा के लिये हुई ! उन्हे जनसम्पर्क अधिकारी के रुप में आये दिन पत्रकारों से पाला पडता था। पर फौज तो फौज है और सिंगा पहले फौजी फिर पीआरओ !

यह प्रथा नौ सेना में भी आ गई। उसका करण था उसके कमान्डर उत्पल वोरा का गुजराती होना। पहला गुजराती कमान्डर जैसी दर्जनों सुर्खिया बटोरने वाले वोरा ठहरे गुजरात के व्यापारी ब्रेन। उन्होने मध्यम मार्ग ढूंढ निकाला। नौ सेना के जहाज पर पत्रकारों को दारु पिलाओ। गुजरात की दारु बन्दी समुन्द्र में तो नहीं लगती।पर अपने भाई लोगों को दारु पीने वोराजी के जहाज पर पोरबन्दर जाना पडे़ ! बार बार यह थोडे ही सम्भव है।

फ्लैट अर्थ न्यूज : मीडिया का नग्न सत्य

ब्रिटेन के खोजी पत्रकार निक डेवीस की नई पुस्तक फ्लैट अर्थ न्यूज ने मीडिया में तहलका मचा दिया है। फरवरी में प्रकाशित इस पुस्तक पर सेमीनारों में और रेडियो टीवी पर चर्चा हो रही है।
पुस्तक का शीर्षक स्पाट पृथ्वी समाचार है। जिस तरह पृथ्वी गोल है और कभी भी सपाट नहीं हो सकती है उसी प्रकार सही समाचार एक गलत कल्पना है।

डेवीस ने पुस्तक में कई ऎसे किस्से दर्ज किये हैं। मिलेनियम बग द्वारा दुनिया के कम्प्यूटरों पर वायरस के आक्रमण का समाचार दुनिया भर में १९९९ के अंत में छा गया। एंटी वायरस उद्योग के लिये यह अरबो खरबों कमाने का धंधा बन गया। फिर क्या ?
निक डेवीस खोजी पत्रकार के रुप में प्रतिष्ठित हैं। उनका कहना है कि समाचारों को दुनिया जासूसी संस्थाओं और पी आर कम्पनियों की कारस्तानियों का अड्डा बन गया है। खर्चा कम करने के नाम पर खबरों की सच्चाई जानने के प्रयत्‍नों पर जोर नही दिया जाता है। पत्रकार दो तीन फोन कर जानकारी इकट्ठा कर लेते हैं। अधिकतर समाचार प्रेसनोट को रिराईट कर बनाये जाते है। अधिकारिक जानकारी के नाम पर सरकारी अधिकारी का बयान ले छुट्टी पा ली जाती है।
इस पुस्तक की लोकप्रियता का कारण यह है कि पत्रकार जानते है डेवीस की बात में काफी दम है। अपने २७ वर्षों के पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर मैं यह कहता हूं कि डेवीस की किताब एक नग्न सत्य है। मीडिया के बारे में !
डेवीस ने इस पुस्तक की वेबसाइट भी बनाई है। मजेदार बात यह है कि इस वेबसाइट पर प्रतिक्रिया देने वाले पत्रकार बडा नाम है। पर इन सभी के नाम के साथ जुडा़ शब्द भूतपूर्व मीडिया की ताकत दर्शाता है। साफ है कि कामकाजी पत्रकार मीडिया की टीका कर अपने साथियों और मालिकों से दुश्मनी मोल नही लेना चाहता। प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी लिखने वालों की विडम्बना यह है कि वे खुद इस माफिया की गुलामी स्वीकर कर स्वतंत्रता-स्वतंत्रता के खेल से लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

पुलित्जर पुरुस्कार

इस सप्ताह पत्रकारिता में प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरुस्कार की धोषणा हुई। १४ में से छह पुरुस्कार प्राप्त कर वाशिंगटन पोस्ट छाया रहा। १९१७ में शुरु हुए इस पुरुस्कार ने विश्‍व स्तर पर अपना स्थान बना लिया है।
इस पुरुस्कार की शुरुआत इसके प्रणेता जोसेफ पुलित्जर के निधन के बाद हुई। पुलित्जर ने उनकी वसियत में इस पुरस्कार के लिये राशि निश्चित की थी। साथ कोलम्बिया युनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म का प्रावधान किया था।
पुलित्जर की कहानी एक संधर्षशील पत्रकार प्रकाशक की कहानी है। उसने उसके जीवन काल में भ्रष्टाचार के विरुध अभियान चलाया । पुलित्जर प्राईज के द्वारा उन्होने उनके अभियान को एक सतत अभियान बना दिया। इस प्राईज की विशेषता यह है कि इसकी जूरी को नियमो में परिवर्तन की छुट दी गई है। इससे इसमे नई श्रेणियों का समावेश भी हुआ है। हंगरी के सम्पन्न परिवार में जन्में जोसेफ पुलित्जर का जन्म १० अप्रैल १८४७ में हुआ। प्रतिवर्ष अप्रैल में ही पुलित्जर प्राईज दिये जाते हैं। उनकी इच्छा फौज में जाने की थी। पर कमजोर स्वास्थ्य और दृष्टि के कारण वे इसमे सफल नहीं हुए। कलम के सिपाही के रुप में वे एक अन्तराष्ट्रीय व्यक्तित्व बन गये।
सामान उठा और होटल में वेटरगिरी करने वाले पुलित्जर का भाग्य भी एक आकस्मिक घटना से खुल गया। एक दिन एक लाईब्रेरी में उन्होने दो शतरंज के खिलाडियों को कुछ चाले समझाई। ये खिलाडी काफी प्रभावित हुए। उन्होने पुलित्जर से काफी चर्चा की। ये दोनों जर्मनी के मशहूर अखबार के सम्पादक थे। उन्होने पुलित्जर को नौकरी दी। और वह पत्रकार बन गया।
२५ वर्ष की उम्र में वह प्रकाशक बन गया। सुबह से रात तक काम करने वाले पुलित्जर ने खोजी पत्रकारिता पर जोर दिया। जल्द ही वह और उसका अखबार मशहूर हो गये। उन्होने आर्थिक संकट में फंसे न्यूयोर्क वर्ल्ड को खरीद उसकी भी कायापलट दी।
पर खराब स्वास्थ्य के कारण ४३ वर्ष की उम्र के बाद वे कभी अखबार के कार्यालय में नहीं गये। इसी दौरान उन्हे आवाज से एलर्जी हो गई और दो दशक तक अपनी नौका में एक साउन्ड प्रूफ़ कमरे में ही रहे। इसे लोग टावर ऑफ साइलेन्स के नाम से पुकारते थे।
इसी समय के दौरान व्यवसायिक स्पर्धा में उन्हें कई अखबारों का सामना भी करना पडा़। १९११ में उनका निधन हो गया। १९१२ में कोलम्बिया स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की शुरुआत हुई और १९१७ में पुलित्जर पुरुस्कार की।

Wednesday, April 2, 2008

गुजरात पर रिसर्च के लिये विधानसभा लाइब्रेरी!

अपने गुजरात विधान सभा के नये अध्य्क्ष आजकल विधान सभा के पुस्तकालय का उपयोग बढाने मे लगे हुए है । ७७००० से अधिक पुस्तकों वाले इस पुस्तकालय की विडम्बना यह है कि किताबे पढने वाला कोई नही है। इसके सदस्य केवल १८२ विधायक और विधानसभा के सदस्य ही है। मुश्किल से एक दर्जन विधायक इसका उपयोग करते हैं।
जनवरी मे विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद अपने भट्ट्जी ने लाइब्रेरी का जब दौरा किया तब यह बात बाहर आई। उन्होने सभी विधायकों को इस पुस्तकालय का उपयोग करने को कहा। विधान सभा के बजट सत्र के बाद पत्रकारों के साथ बातचीत मे उन्होने कहा कि यदि कोई व्यक्ति गुजरात पर रिसर्च करना चाहता है तो वे उसे लाइब्रेरी की पूरी सुविधा देंगे। विधानसभा की कार्ववाही का रिकार्ड राज्य के ईतिहास का एक अनोखा रूप है।
अपने भट्ट्जी ठहरे मीडिया गुरू। उनका कहना है कि नर्मदा पर हुई बहस नर्मदा के कार्य का एक अधिकारिक दस्तावेज है। इसी प्रकार राज्यपाल का विधानसभा को सम्बोधन राज्य की प्राथमिकताऒ के बदलते स्वरूप को प्रतिबिम्बित करता है। किसी भी पी एच डी छात्र के एक अच्छे गाईड बन सकते हैं अपने भट्टजी! अखबारवालो को अच्छी कापी देने मे तो माहिर हैं ही अपने भट्टजी । यह समाचार इसका एक अच्छा उदाहरण है।
आज भट्ट्जी से मिलना हुआ। उन्होने एक डिजाईनर को बुलाया हुआ था। एक अच्छे रिसर्च हाल की रूपरेखा दे रहे थे। बोले ब्रिटिश लाइब्रेरी के मैनेजर सतीश देशपांडे जैसे एक्सपर्ट की सलाह ले इसे एक ऎसी लाइब्रेरी बनाना है जिसमे लोग शांति से पढ सके और चाहे तो उन मुद्दों पर चर्चा कर सकें !! भट्ट्जी का आफ़र सभी के लिये है, कोई भी उनका सम्पर्क कर सकता है.

फ़र्जी मुठभेड हीरो वणजारा को मानवाधिकार याद आया

गुजरात के बाहोश अफ़सर डी जी वणजारा और उनके साथी आला अफ़सर आजकल काफ़ी परेशान है। उनके वकील का कहना है कि पुलिस उनकी तौहीन कर रही है। पुलिस उन्हे हथकडी पहनाने की बात कर रही है। वणजारा और उनके साथी सोहराबुद्दिन की फ़र्जी मुठ्भेड के लिये आजकल साबरमती जेल मे हैं ।
कुछ समय पहले वणजारा ने अस्वस्थता की शिकायत की थी। जेल के डाक्टर का कहना था कि सिविल अस्पताल ले जाओ इन्हे। उन्हे ले जाने के लिये पुलिस बुलाई गई। इन्सपेक्टर ने हथकडी लगाने की बात की। वणजारा आग बबुला हो गये। बोले कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ़ है।
कुछ दिन बाद यही घटना एक अन्य अफ़सर के साथ हुई। उन्होने भी आग बबुला हो पुलिस के साथ जाने से इंकार कर दिया। सोहराबुद्दिन की फ़र्जी मुठ्भेड और उसकी बीबी को जिंदा जलाने के किस्से मे गुजरात और राजस्थान पुलिस के एक दर्जन पुलिसवाले जेल मे हैं । इनमे तीन आइ पी एस अधिकारी है।
इनके वकील ने अहमदाबाद के एक अदालत मे शिकायत की है और कहा है कि वणजारा और उनके साथी आला अफ़सरो के साथ पुलिस का व्यवहार मानवाधिकार भंग का मामला है। देखा फ़र्जी मुठभेड वालो को भी मानवाधिकार याद आता है, जब खुद का किस्सा होता है।खैर जिस अदालत पर लोग मानवाधिकार का गलत पक्ष लेने की बात करते है, उसने इस किस्से मे पुलिस के आला अफ़सरो को १४ अप्रैल को हाजिर होने को कहा है जहा उनसे पूछा जायेगा कि वो वणजारा और उनके साथी आला अफ़सर को हथकडी लगाने की बात क्यों करते हैं ?

Tuesday, April 1, 2008

अब शेर हाथी दत्तक लो !

अहमदाबाद नगर निगम एक अनोखी योजना लाया है। आप इसके प्राणी संग्राहलय के किसी भी प्राणी या पक्षी को दत्तक ले सकते है। हम यह स्पष्ट कर दे कि आप इन्हें घर नहीं ले जा सकते हैं । पर इनके घर के बाहर आप्के नाम की तख्ती लगी होगि जो आपको और अन्य को यह बतायेगी कि इसके पालक पिता या माता आप हैं।
आप इनसे मिलने जा सकते हैं। आप इनकी खाने पीने और रहने की व्यवस्था के बारे मे संग्राहलय के अधिकारी की कान खिचाई कर सकते हैं। संग्राहलय के अधीक्षक डा आर के साहू का कहना है कि काफ़ी लोग इसमे रस ले रहे हैं। ऎक व्यक्ति अपने पुत्र की सालगिरह पर एक चिडिया दत्तक लेने का विचार कर रहा है। उसका कहना है कि जन्मदिन का खर्चा चिडिया के नाम !
साहू के अनुसार यह प्राणी संग्राहलय को फ़ंड तो दिलवायेगा ही, साथ ही यह अहमदाबाद के लोगो मे प्राणी प्रेम भी बढायेगा।
आप दत्तक लेना चाहते है किसी को । चिडिया का एक साल का रू ३६००, हाथी का रू २.५८ लाख, हिप्पोपोटोमस का १.५१ लाख और चीते का १.२६ लाख

Monday, March 31, 2008

नोट को सम्मान दो

नोट को सम्मान कौन नही देता है ? नोट के लिये तो लोग क्या नही करते? लक्ष्मी की पूजा करते है। भगवान से सौदा करते हैं। कहते हैं कि हे भगवान हमें इतने पैसे दे दो, हम तुम्हे ये दे देंगे। कटकी बोलो या फ़िर कहो कमीशन।
पर नोट यानी कि कागज़ के नोट की तो हालत खस्ता है। लोग इस पर ना जाने क्या क्या लिखते हैं ? जरा सोचो कितना महंगा राईटिंग पैड होता है यह लिखा हुआ नोट। लोग फ़ूलों की माला पहराते हैं। पर कितने महंगे फ़ूल खरीदे जा सकते हैं। और फ़िर गले से फ़ूल उतरे नहीं कि गये कचरे की टोकरी में।
नोटों की माला पहनाओ और अगले को उसकी कीमत बताओ। और उसके दरबार मे अपना रुतबा बढाओ!
कितना जोरदार ख्याल है? लोग करते ही हैं यह सब। पर अपने रिजर्व बैंक का मानना है कि यह सब तो बेचारे नोट का अपमान है। नोट भगवान है, रिजर्व बैंक का कहना है। वो इंसान के गले का हार कैसे बन सकता है। रिजर्व बैंक ने हाल ही मे सभी से अपील की है कि नोट भगवान है उसे सम्मान दो। मान गये अपने रिजर्व बैंक के इस अध्यात्म दर्शन को।
बोलो जै नोट भगवान की!!!!

अहमदाबाद में सस्ती शराब

आहमदाबाद और शराब । पूरे गुजरात मे जब शराबबंदी है, तब अहमदाबाद मे शराब कैसे मिल सकती है? वो भी सस्ती शराब ! आज अहमदाबाद के एक अखबार ने पहले पन्ने पर सस्ती शराब के समाचार छापे। अखबार का कहना है कि यह पुलिस द्वारा पकडी गई शराब है। यह ४० से अधिक उम्र वालों को ही मिलेगी। पहले आओ, माल पाओ।
रिपोर्टर ने अपनी तरफ़ से काफ़ी मेहनत भी की लगती है। उसने यह भी बताया है कि सरकारी दुकान पर क्या भाव है और सस्ती शराब का क्या दाम है। महिलाओं और बालकों को दारू नही बेची जायेगी । उम्र का सबूत लाना जरूरी है।
भैये यह है अंदाज अपने अहमदाबाद के एक अखबार के अप्रैल फ़ूल मनाने का। यह अखबार है संदेश । गुजरात समाचार का अंदाज ही अलग है। अखबार मे सूचना है कि यदि अखबार के गिफ़्ट कूपन मे सूर्य का निशान पाओ तो हमसे रु१,००० ले जाओ!!
यह तो आप को गुजरात मे अप्रैल फ़ूल की एक झलक बतलाने के लिये है, आपका अप्रैल फ़ूल बनाने के लिये नही।

Wednesday, February 27, 2008

मीडिया मास्टर भट्टजी

सुर्खियों में कैसे छा जाना यह तो सीखे कोई वरिष्ट भाजपा नेता अशोक भट्ट से। विषय कोई भी हो , हमारे भट्टजी उसे मीडिया में इस तरह से उछाल सकते हैं जैसे अपने धोनी भाई किसी भी खिलाडी की बॉल को बाउन्ड्री तक पंहुचाते है।

सबसे अधिक बार निर्वाचित विधायक का भट्टजी का रिकार्ड खुद ही एक बडी उपलब्धी है। इसे कोई संयोग कह सकता है। पर कानून मंत्री के रुप में जिस तरह से उन्होने सुर्खिया बटोरी इसने एक बात तो सिद्ध कर दी कि कानून मंत्रालय तर्क आधारित बोरिंग विषय का मन्त्रालय नहीं है।

अब विधानसभा के अध्यक्ष के नाते, विधानसभा की कार्रवाई में उनकी भूमिका उन्हे हर रोज अखबारों में जगह दिलवाती है। यह तो उनके पद से जुडी कार्रवाई है। पर हमारे भट्टजी तो भट्टजी हैं। विधानसभा के अंदर ही नही, वे तो बाहर भी काफ़ी सक्रिय है।

पिछले हफ़्ते कुछ पत्रकार उनसे मिलने पहुंचे। मुद्दा था विधानसभा का प्रवेश पास। भट्टजी के लिये यह कोई बडी बात नहीं थी। बोले नो प्रोब्लम। चाय-पकौडे खाओ। और फिर उन्होने बताया कि किस तरह विधानसभा की समृद्ध लायब्रेरी विधायकों की उदासीनता का शिकार है।विधायक उसका उपयोग ही नहीं करते। इसलिये उन्होंने पत्र लिख विधायकों से आग्रह किया है कि वे पुस्तकालय का उपयोग करें!

पत्रकार कोई प्रतिक्रिया दे, उससे पहले ही उन्होंने कहा कि पूर्व विधायक भी विधानसभा का अंग हैं। भट्टजी उनके अनुभव और ज्ञान का पूरा उपयोग करना चाहते हैं। और उन्होंने इन पूर्व विधायकों के लिये विधानसभा लाउन्ज में बैठने की इजाजत दे दी हैं!!

भट्टजी का मूड देख पत्रकारों ने कहा कि विधानसभा कैन्टीन सब्जी मार्केट जैसी हो गई है। पत्रकारों को बैठने के लिये जगह भी नहीं होती। कुछ करो। भट्टजी बोले तथास्तु। और जैसे ही पत्रकार इस हफ़्ते कैन्टीन में गये उन्होंने देखा कि कैन्टिन में पत्रकारों के लिये एक अलग पार्टींशन हो गया था!!!

मोदीजी के राज में पिछले पांच वर्षो में अपने भट्टजी सुर्खीयां तो मार लेते थे, पर पहले की तरह पत्रकारों के साथ भोजन मिलन नहीं कर पाते थे। वो क्या किसी भी मंत्री की हिम्मत नहीं थी कि मोदीजी के जुबानी फरमान का उल्लंघन कर पत्रकारों के साथ चाय भी पी ले। खाने की बात तो छोडो। मोदीजी ने सबकी बोलती बंद कर रखी थी।

खैर अब तो अपने भट्टजी अध्यक्ष सर्वोपरी हैं। जिस दिन अध्यक्ष बने तब पत्रकारों को नये घर पर खाने पर बुला लिया। और विधानसभा के तीसरे दिन ही पत्रकारों को सर्किट हाऊस में दावत का ऐलान किया।

अपने भट्टजी तो गृह में और गृह के बाहर पूरी तरह से प्रोफेशनल हैं। खाने से पहले पत्रकारों से दो मिनट के लिये मिले। बोले मैंने २९ फरवरी से तीन दिन के लिये ज्ञान शिविर का आयोजन किया है। गुजरात और बाहर से विभिन्न विषयों के विद्वान विधायकों को संसदीय इतिहास, परम्परा और प्रणाली से अवगत करायेंगे।

पूरे देश में पहली बार। लोकसभा के अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी खुद आयेंगे इस शिविर में भाग लेने। देखा अपने मीडिया मास्टर भट्टजी की सुर्खीबाजी की दक्षता!!!! क्या कोई रिर्पोटर इस खबर को मिस कर सकता है। और भट्टजी का माल पानी जीमने के बाद पत्रकार यह राष्ट्रीय समाचार बनाने में लग गये।
Post this story to: Del.icio.us | Digg | Reddit | Stumbleupon