Followers

Monday, February 7, 2011

उमेद भवन के विप्र कमलेश

पिछले महीने कच्छ जाना हुआ. काफी समय के बाद यहाँ. के सर्किट हाउस में रुकना हुआ. किसी भी पत्रकार के लिए सर्किट हाउस काफी महत्वपूर्ण जगह है. यहाँ सभी काम के लोगों से मिलना हो जाता है. आप को यह भी मालूम पड़ता है की कौन आ रहा है? कौन जा रहा है ?और किसी भी सरकार मान्य पत्रकार के लिए रहने की इससे सस्ती जगह हो ही नहीं सकती . अगर वो अपने खर्चे पर रह रहा हो!
हर रोज सुबह स्वागत कक्ष के काउंटर के पीछे चश्मे की फ्रेम के पीछे छुपे चेहरे से मुलाक़ात हो जाती थी. थोड़ी बहुत गप शप भी. ये थे हमारे कमलेश मांकड़ . पिछले ३० वर्षो से यहीं हैं. २००१ के विनाशक भूकंप ने कच्छ जिले का काफी नक्क्षा बदल दिया है. यहाँ तक कि सिर्किट हाउस जिसे कि उमेद भवन के नाम से जाना जाता है उसमे भी काफी बदलाव आया है. कई कमरे नए बनाए गए हैं. भूकंप में यहाँ भी काफी नुक्सान हुआ था.
पर पिछले तीस वर्षो से यही मौजूद बदलते हुए कच्छ के वो साक्षी हैं जिन्होंने सर्किट हाउस में बैठे बैठे राज्य के इस सबसे बड़े जिले में होने वाले राजनीती के खेलों को काफी नजदीकी से देखा है. अगर कभी उनसे इस बारे में पूछा तो यह कह जान छुड़ा ली कि सारा दिन आने जाने वालों की व्यवस्था में हे गुजर जाता है. इस सबकी फुर्सत कहाँ. किसी को भी यह बात सही लगेगी.पर पिछले ३२ वर्षों के सिर्किट हाउस में रुकने के हमारे अनुभव ने हमें यह बताया है कि सिर्किट हाउस के मेनेजर और अन्य स्टाफ काफी अच्छे खिलाड़ी होते हैं. उन्हें तरह तरह के राजनीती के खिलाडियों से मिलना पड़ता है और हर तरह के सरकारी अधिकारीयों को संभालना होता है. साफ़ है कि अपने कमलेश भाई को अच्छी तरह से मालूम है कि पत्रकारों से  किस नाप तोल   से बात चीत करनी चाहिए!
खैर , अपने कमलेश भाई का कहना है कि १९८२ में जब वे बी कॉम कर यहाँ दहाड़ी कर्मचारी लगे थे तो उन्हें रोज के आठ रूपये ६५ पैसे मिलते थे. आज उनकी तनख्वाह रूपये १४,००० है. पर आज भी वो अस्थायी कर्मचारी ही हैं. उन दिनों जव असिस्टंट कलेक्टर थे आज वो चीफ सेक्रेटरी बन रेतिरे हो रहे हैं. उस जमाने के नए एस पी डी जी पी बन रिटायर हो रहे हैं. 
इस सब बावजूद अपने कमलेश भाई एक  संतोषी आत्मा हैं.एक ऐसे ब्राहमण जिसका जीवन जिंदगी के दो सिरों को मिलाने में ही ख़त्म हो जाता है. जब उनके शौक के बारे में पूछा, तो बोले क्रिकेट. पर जिन्दगी में शौक पूरा करने के लिए वक्त ही नहीं मिला. पर उन्हें इसका कोई गम नहीं है.
 उन्होंने इन सपनो को उनके जुड़वा लडको को क्रिकेटर बना कर पूरा कर लिया है. काफी फक्र से बताते हैं कि दोनों लड़के करण और कुनाल  जिले के काफी अच्छे क्रिकेट के खिलाड़ी हैं. दोनों ने एम् बी ए किया है. दोनों को नौकरी मिल गई है. इनकी शादी कर अपने पौराणिक कथाओं वाले विप्र कमलेश उनके जीवन के सभी ध्येय पुरे कर लेंगे. विप्र तो हमेशा लक्ष्मी से दूर ही मिलता है अपनी पौराणिक कथाओं में.
Post this story to: Del.icio.us | Digg | Reddit | Stumbleupon