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Thursday, June 25, 2015

जवाहर कर्नावट का अक्षय्यम

आज ही अक्षय्यम का नया अंक आया। यह बैंक ऑफ बड़ौदा का त्रैमासिक है। हालांकि ऑफिस में इस प्रकार की कई मैगज़ीन आती हैं, पर मुझे यह काफी प्रिय है। इसके लेखों में बोलचाल की भाषा और विषय की गहराई का अनोखा समतोल है। शायद इसी कारण इसे पढ़्ने में आनंद आता है।
जवाहर कर्नावट
इसके साथ हे हमारी इसके सम्पादक और हमारे पुराने परिचित जवाहर कर्नावट की यादें ताजा हो जाती हैं जब वे अहमदाबाद में थे। जवाहर कर्नावट उन चुने हुए हिन्दी अधिकारियों में हैं जिनमे भाषा की पकड़ के साथ एक पत्रकार की समचार सूंघो नाक भी है। यह अक्षय्यम के हर लेख में बखूबी झलकता है।
अक्षय्यम की हिन्दी मुझे इसलिये पसन्द है क्योंकि इसमे सरकारी क्लिष्ट हिन्दी का कोई दिखावा नही है। पिछले एक अंक में जिस तरह बैंक के कार्यपालक निदेशक रंजन धवन का परिचय दिया गया था वह किसी भी ऑफिस मैगज़ीन में देखने को नहीं मिलता। जवाहर कर्नावट जैसा सम्पादक ही इस प्रकार के  वर्णन को लिख और प्रकाशित कर सकता है।
कार्यपालक निदेशक रंजन धवन के बारे लिखा है “ बैंक में आपकी छवि एक जिंदादिल, चुस्त दुरुस्त, हरफनमौला व्यक्तित्व की है”।छू जाने वाली बोल्चाल की भाषा। हालांकि हर अंक एकाद महिने लेट निकलता है, इसकी भाषा और विषय चयन में कोई चूक नही होती।
जवाहर कर्नावट के लिए यह जरूर एक बड़ी खुशी की बात होगी कि रिजर्व बैंक ने उनके अक्षय्यम को इस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ बैंक मैगज़ीन का अवार्ड दिया। इसी माह जून महिने में यह अवार्ड दिया गया।
जवाहर कर्नावट पिछले दो वर्षों में इस मैगज़ीन में काफी बदलाव लाये हैं। भारतीय भाषाओं के बारे में , बाहर के लेख और किसी सेलीब्रिटी का इंटरवयू। इस प्रकार के मसाले से इस मैगज़ीन ने हमारे जैसे पाठकों के दिल और दिमाग में एक जगह बना ली है। इस सब के बावजूद अगर मुझे सबसे प्रिय कोई कॉलम लगता है तो वह है- आइये सीखिए भारतिय भाषाएं। इसमे एक ही बोलचाल के वाक्य को हिन्दी सहित आठ भाषाओं में लिखा जाता है। हर बार नया विषय और उससे जुड़े 15 वाक्य।एक बार रेलगाड़ी से जुड़े 15 वाक्य थे तो इस बार हवाई जहाज से सम्बन्धित। और ये सभी वाक्य देवनागरी लिपि में लिखे होते हैं।
जैसे कि तेलगु में मैने मथुरा में गाड़ी बदली थी हो जायेगा नेनु मक्षरालो बंडिनी मारानु और कन्नड़ में नानु माथुरादल्लि रलु बदलायिसिदे!
जवाहर कर्नावट को शुरू से ही पत्रकारिता का शौक रहा है।उस जमाने में हिन्दी स्टैनोग्राफी में माहिर हो और पत्रकारिता का शौक होने के कारण वे नई दुनिया आदि अखबारों के लिये फ्रीलांसिंग करते थे। बैंक में स्टेनो की नौकरी मिलने के बाद भी उनका यह शौक बरकार रहा एक नये अंदाज में। उन्होने हिन्दी पत्रकारिता पर पी एच डी कर डाली उनका शोधग्रंथ जल्द ही एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने वाला है।
उनकी एक पुस्तक भी जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। यह है विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता के सौ साल। इसके लिए वे कई देशों मे भी गए हैं।

अक्षय्यम के ताजा अंक में विदेशों मे हिन्दी दिवस के आयोजन की रिपोर्ट है। बैंक ऑफ बड़ौदा ने इस बार पहली बार विदेशों मे हिन्दी दिवस मनाया था। पूरे  25 देशों में।

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